________________
1555555555555555555555555555555
food. He should not have hatred against anyone. He should be totally free from greed. He should have an attitude of service to all. He should not make any condemnable sound while eating. He should neither eat very quickly nor very slowly. He should not drop any food on the ground while eating. He should take food in a careful manner from a broad pot and where there is light. He should take food in a dignified manner. He should avoid faults regarding mixing the food. He should avoid other faults regarding eating food. He should take food in such a manner as a 45 cart is oiled or an ointment is placed on the wound. He should take food i only to properly lead the life of self-restraint, to undergo ascetic discipline in a proper manner and to keep his life-force in order in ascetic conduct. A monk should engage himself in the state of equanimity regarding food, keep his soul free from dirt or troubles and lead the life
of faultless conduct. Such a saint following the principles of non-violence i is a true practitioners of path leading to salvation.
पाँचवीं भावना : आदान-निक्षेपणसमिति FIFTH SENTIMENT : DISCRIMINATION IN KEEPING AND PICKING UP THINGS
११७. पंचमं आयाणणिक्खेवणसमिई-पीढ-फलग-सिज्जा-संथारग-वत्थ-पत्त-कंबल-दंडगरयहरण-चोलपट्टग-मुहपोत्तिय-पायपुंछणाई एयं पि संजमस्स उवबूहणट्टयाए वायातव-दंसमसगसीयपरिरक्खणट्ठयाए उवगरणं रागदोसरहियं परिहरियव्वं संजमेणं णिच्चं पडिलेहण-पप्फोडणपमज्जणयाए अहो य राओ य अप्पमत्तेण होइ सययं णिक्खियव्वं च गिहियव्वं च भायणभंडोवहिउवगरणं एवं आयाणभंडणिक्खेवणासमिइजोगेण भाविओ भवइ अंतरप्पा असबलमसंकिलिट्ठणिव्वणचरित्तभावणाए अहिंसए संजए सुसाहू।
११७. अहिंसा महाव्रत की पाँचवीं भावना आदान-निक्षेपणसमिति है। इसका स्वरूप इस प्रकार है-संयम के उपकरण पीठ-पीढ़ा, चौकी, फलक पाट, शय्या-शयन का आसन, संस्तारक-घास काम बिछौना, वस्त्र, पात्र, कम्बल, दण्ड, रजोहरण, चोलपट्ट, मुखवस्त्रिका, पादपोंछन-पैर पोंछने का वस्त्रखण्ड, ये अथवा इनके अतिरिक्त उपकरण संयम की रक्षा या वृद्धि के उद्देश्य से तथा पवन, धूप, डांस, मच्छर और शीत आदि से शरीर की रक्षा के लिए धारण-ग्रहण करना चाहिए। (शोभावृद्धि आदि किसी अन्य प्रयोजन से नहीं)। साधु सदैव इन उपकरणों के प्रतिलेखन, प्रस्फोटन-झटकारने और प्रमार्जन करने में, दिन में और रात्रि में सतत अप्रमत्त रहे और भाजन-पात्र, भाण्ड-मिट्टी के बर्तन, उपधि-वस्त्र तथा अन्य उपकरणों को यतनापूर्वक रखे या उठाये।
इस प्रकार आदान-निक्षेपणसमिति के योग से भावित अन्तरात्मा वाला साधु निर्मल, असंक्लिष्ट तथा अखण्ड-निरतिचार चारित्र की भावना से युक्त अहिंसक संयमशील सुसाधु होता है अथवा ऐसा सुसाधु ही अहिंसक होता है।
a5555555555 听听听听听听听听听听听 555555555FFFFFFFFFFFF听听FFFFF
श्रु.२, प्रथम अध्ययन : अहिंसा संवर
(289)
Sh.2, First Chapter: Non-Violence Samvar
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org