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म की रक्षा के लिए यतनाशील एवं अप्राप्त संयमयोगों की प्राप्ति के लिए उद्यमवान, विनय का आचरण के में करने वाला तथा क्षमा आदि गुणों की प्रवृत्ति से युक्त रहे। ऐसी भिक्षाचर्या में तत्पर भिक्षु ऊँच-नीच 2 अनेक घरों में भ्रमण करके थोड़ी-थोड़ी भिक्षा ग्रहण करे। भिक्षा प्राप्त करके अपने स्थान पर गुरुजन के के समक्ष आये। जाने-आने में लगे हुए अतिचारों-दोषों का प्रतिक्रमण करे। प्रतिक्रमण से निवृत्त होकर * लाया हुआ आहार-पानी गुरुजनों को दिखला दे, फिर गुरुजन के अथवा गुरुजन द्वारा निर्दिष्ट किसी 5 अग्रगण्य साधु के आदेश पर मार्गदर्शन के अनुसार, सब अतिचारों-दोषों से रहित एवं अप्रमत्त होकर
विधिपूर्वक अनेषणाजनित दोषों की निवृत्ति के लिए पुनः प्रतिक्रमण (कायोत्सर्ग) करे। तत्पश्चात् शान्त
भाव से सुखपूर्वक बैठकर मुहूर्तभर धर्मध्यान, गुरु की सेवा आदि शुभ योग, तत्त्वचिन्तन अथवा 9 म स्वाध्याय के द्वारा अपने मन को, चित्त को स्थिर करके श्रुत-चारित्ररूप धर्म में संलग्न करे, चित्तशून्यता 5 # से रहित होकर, संक्लेश से मुक्त रहकर, कलह अथवा दुराग्रह से रहित मन वाला होकर, समाधियुक्त , मन वाला-अपने चित्त को उपशम में स्थापित करने वाला, श्रद्धा, संवेग-मोक्ष की अभिलाषा और 5
कर्मनिर्जरा में चित्त को संलग्न करने वाला होकर, मन में तीर्थंकर के प्रवचनों के प्रति वात्सल्य भाव से ओतप्रोत होकर, ऐसा साधु अपने आसन से उठे और हृष्ट-तुष्ट होकर यथारानिक-दीक्षा में छोटे-बड़े :
के क्रमानुसार अन्य साधुओं को आहार के लिए भावपूर्वक निमंत्रित करे। है गुरुजनों द्वारा लाये हुए आहार को वितरण कर देने के बाद उचित आसन पर बैठे। फिर मस्तक , सहित शरीर को तथा हथेली को भलीभाँति प्रमार्जित करके-पूंज करके आहार में अनासक्त होकर, में स्वादिष्ट भोजन की लोलुपता से रहित होकर तथा रसों में आसक्तिरहित होकर, दाता की तथा भोजन , की निन्दा नहीं करता हुआ, सरस वस्तुओं में आसक्ति न रखता हुआ, अकलुषितभावपूर्वक, लोलुपता से 5 # रहित होकर, परमार्थ बुद्धि का धारक साधु (भोजन करते समय) 'सुड्-सुड्' ध्वनि न करता हुआ, के 'चप-चप' आवाज न करता हुआ, न बहुत जल्दी-जल्दी और न बहुत देर से, भोजन को भूमि पर न . # गिराता हुआ, प्रकाशयुक्त चौड़े पात्र में (भोजन करे।) भोजन करते हुए यतनापूर्वक, आदरपूर्वक एवं म संयोजनादि सम्बन्धी दोषों से रहित, अंगार तथा धूम दोष से रहित होकर आहार करे, जिस प्रकार के
गाड़ी की धुरी में तेल देते हों, अथवा घाव पर मलहम लगाते हों, उसी प्रकार केवल संयमयात्रा के # निर्वाह के लिए एवं संयम के भार को वहन करने के लिए प्राणों को धारण करने के उद्देश्य से साधु को - । सम्यक् प्रकार से-यतना के साथ भोजन करना चाहिए। ___इस प्रकार आहारसमिति (एषणासमिति) में समीचीन रूप से प्रवृत्ति के योग से अन्तरात्मा भावित करने वाला साधु, निर्मल, संक्लेशरहित तथा अखण्डित चारित्र की भावना वाला अहिंसक संयमी मोक्षमार्ग का आराधक होता है।
116. The fourth sentiment is equanimity in collection of alms. A monk should collect food free from all faults relating to it as mentioned in the scriptures. He should act like a bumble bee collecting a little each from many houses. He should remain away from familiarity. He should not fi
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श्रु.२, प्रथम अध्ययन : अहिंसा संवर
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Sh.2, First Chapter:Non-Violence Samvar
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