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आस्त्रवद्वार का उपसंहार CONCLUSION OF ASRAV DVAR
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शास्त्रकार ने पूर्वोक्त पाँच अध्ययनों में पाँच आश्रवों का वर्णन किया है। अब पाँच गाथाओं द्वारा उनका उपसंहार करते हैं। ९८. एएहिं पंचहिं असंवरेहि, रयमादिणित्तु अणुसमयं ।
चउविहगइपेरंतं, अणुपरियट ति संसारे ॥१॥ ९८. इन पूर्वोक्त (प्राणातिपात आदि) पाँच आस्रवद्वारों के निमित्त से जीव प्रतिसमय आत्म-प्रदेशों के साथ कर्मरूपी रज का संचय करके चार गतिरूप संसार में परिभ्रमण करता रहता है।
The author has described five asravas (inflow of Karma) in the preceding five chapters. Now he concludes them with five verses.
98. A living being collects every moment the Karmic matter with the above said five gateways of asravas (inflow of Karma) namely violence to life force and others. As a result thereof he wanders in the mundane world consisting of four states of existence. ९९. सव्वगइपक्खंदे, काहिंति अणंतए अकयपुण्णा।
जे य ण सुणंति धम्मं, सोऊण य जे पमायति ॥ २॥ ९९. जो आस्रवद्वारों का निरोध नहीं करते वे पुण्यहीन प्राणी धर्म का श्रवण नहीं कर पाते। __ अथवा श्रवण करके भी उसका आचरण करने में प्रमाद करते हैं, व अनन्तकाल तक चार गतियों में 卐 गमनागमन (जन्म-मरण) करते रहेंगे।
99. Those unlucky persons who do not close the asrava dvars (inflow of Karma) cannot listen to scriptures. Even if they listen to scriptures, they remain slack in putting them into practice. They shall remain wandering in the mundane world of four states of existence for an infinite period. १००. अणुसिटुं वि बहुविहं, मिच्छदिट्ठिया जे णरा अहम्मा।
बद्धणिकाइयकम्मा, सुगंति धम्मं ण य करेंति ॥ ३॥ १००. जो पुरुष मिथ्यादृष्टि हैं, धर्म से हीन हैं, जिन्होंने निकाचित (अत्यन्त प्रगाढ़) कर्मों का बन्धन किया है, वे उत्तम गुरुजनों के पास अनेक तरह से शिक्षा (ज्ञान) पाकर, धर्म का श्रवण तो करते हैं है किन्तु उसका आचरण नहीं कर सकते हैं।
| श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
(244)
Shri Prashna Vyakaran Sutra
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