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९. रति १०. अरति
११. शोक
१२. भय ॐ १३. जुगुप्सा १४. वेद
मिथ्यात्व आदि ने आत्मा को अनादिकाल से पकड़ रखा है। ये भाव परिग्रह हैं। इन्हीं के कारण बाह्य ॐ वस्तुओं, जैसे-शरीर, वस्त्र, धन, स्त्री आदि पर मोह या ममत्वभाव, मेरापन जागता है। जब अन्तरंग में परिग्रह बुद्धि होती है तभी बाह्य वस्तुएँ परिग्रह बनती हैं। शास्त्र में बाह्य परिग्रह के निनोक्त १० प्रकार बताये हैं
१. क्षेत्र-खेत आदि खुली भूमि आदि। २. वस्तु-रहने के भवन आदि। ३. हिरण्य-चाँदी आदि के सिक्के। ४. सुवर्ण-सोना (सोने के आभूषण आदि)। ५. धन-हीरा, पन्ना, मणि, मोती, पैसा, रुपया आदि। ६. धान्य-गेहूँ, चावल आदि अनाज। ७. द्विपद-चतुष्पद-दो पैर वाले मनुष्य तथा चार पैर वाले गाय, भैंस आदि पशु। ८. दासी-दास, नौकर चाकर-सेविकाएं आदि। ९. कुप्य-सोने-चाँदी के अतिरिक्त वस्त्र, बर्तन, अलमारी आदि सभी प्रकार का सामान। १०. धातु-चाँदी, ताँबा, लोह आदि धातु। __बाह्य परिग्रह का विस्तृत रूप ‘णाणा मणि'-पद से मूल पाठ में बताया गया है।
इस परिग्रह को अधर्म वृक्ष की उपमा दी है। तृष्णा इस वृक्ष की जड़ है। विस्तृत स्पष्ट वर्णन मूल पाठ में बताया जा चुका है। ___Elaboration-Narrating the link of attachment with non-chastity, Shris Abhayadev Suri in his commentary has said, 'Non-chastity occurs only
as the result of attachment so it is necessary to narrate it after non____chastity.'
The purport of this aphorism is quite simple. It simply proves that i the desire for worldly things of a human being do not cool down. A man may have many types of precious stones, jewels, gold and other precious material things; he may have servants, employees and others; he may have chariots and the like to ride, he may have a large area containing 5 hills and town extending upto the sea under his control; he may enjoy the kingdom extending upto the whole earth; but his wants shall never subdue. With gain, greed increases further. So the persons who want to have contentment along with increase in belongings, their condition is i such as that of a person who wants to extinguish fire adding ghee to it.
श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
(226)
Shri Prashna Vyakaran Sutra
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