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चित्र-परिचय 12|
Illustration No. 12 परिग्रह का स्वरूप चित्र में परिग्रह के स्वरूप को दिखाया गया है।
अनेक प्रकार के मणि, सोना, रत्न, स्त्री, पुत्र-पुत्री और समस्त परिवार, दास-दासी, गृह-सेवक, पलंग, आसन, वाहन, वस्त्र, गंध, माला, भवन आदि पर ममत्व रखना परिग्रह है। बाह्य परिग्रह 2 के दस प्रकार हैं-(1) क्षेत्र, (2) वस्तु, (3) हिरण्य, (4) सुवर्ण, (5) धन, (6) धान्य, (7) द्विपद-चतुष्पद, (8) दास-दासी, (9) कुप्य, (10) धातु ।
परिग्रहरूपी महावृक्ष-अनन्त तृष्णा रूपी इच्छाएँ वृक्ष का मूल है। लोभ, क्रोध आदि कषाय ॐ इसके विशाल महास्कंध हैं। सैंकड़ों प्रकार की चिन्ताएँ, शोक-संताप इसकी फैलती हुई शाखाएँ
हैं। ऋद्धि, रस और साता रूप गौरव इसकी शाखाओं की अग्र टहनियाँ हैं। ठगाई, छल, दंभ, कपट के इस वृक्ष की छाल, पत्ते और फूल हैं। कलह, खेद, शारीरिक श्रम इसका अग्र शिखर है।
इस परिग्रह को अधर्म महावृक्ष की उपमा दी गई है। यह वृक्ष राजा-महाराजाओं, देवताओं द्वारा | पूजित है।
-सूत्र 93, पृ. 220
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DEFINING PARIGRAHA (COVETOUSNESS) The illustration shows objects of covetousness.
To have fondness and craving for a variety of possessions like gems, gold, wife, son, daughter, family, slaves, servants, bed, chair, vehicle, dresses, perfumes, ornaments, and buildings is called parigraha or covetousness. External Parigraha is often types -(1) Area, (2) things, (3) silver, (4) gold, (5) money, (6) grains, (7) bipeds and quadrupeds, (8) slaves, (9) utensils, and (10) metals.
Great tree of parigraha - Infinite cravings and desires are the roots of the tree of Parigraha. Passions including greed and anger form its great trunk. Hundreds of worries grief and pain are its spreading branches. Wealth, taste, pleasure and pride are its smaller branches. Cheating, deceit, ego, and slight are its bark, leaves and flowers. Quarrel, sorrow and physical labour are its top.
This parigraha is given the metaphor of the tree of sin. Kings, monarchs and divine beings worship this tree.
-Sutra-93,page-220
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