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555555555555555555555555555555555555 three palyopam these human beings of akarm bhoomi (where one does not have to make any effort for livelihood) they die in a state of nonsatisfaction.
विवेचन : उपरोक्त सूत्रों में यद्यपि देवकुरु और उत्तरकुरु नामक अकर्मभूमि-भोगभूमि के नाम का उल्लेख किया गया है, तथापि उपरोक्त वर्णन प्रायः सभी तीस अकर्मभूमिज मनुष्यों के लिए और ५६ अंतरद्वीप के युगलिकों के लिए समझ लेना चाहिए। आयु और अवगाहना जहाँ जितनी है उतनी समझनी चाहिए। देवकुरु और उत्तरकुरु का नामोल्लेख करने का कारण यह प्रतीत होता है कि वह उत्तम अकर्मभूमि है।
अकर्मभूमि के मनुष्य युगलिक कहलाते हैं, क्योंकि वे पुत्र और पुत्री के रूप में-युगल के रूप में ही उत्पन्न होते हैं। वे पुत्र और पुत्री ही आगे चलकर पति-पत्नी बन जाते हैं और एक युगल को जन्म देते हैं। अधिक सन्तान उत्पन्न नहीं होती।
इन युगलों का जीवन-निर्वाह वृक्षों से होता है। वनस्पतिभोजी एवं पूर्ण रूप से प्राकृतिक जीवन व्यतीत करने के कारण उनकी शारीरिक रचना कितनी सुगठित, स्वस्थ एवं स्पृहणीय होती है, यह तथ्य मूल पाठ में वर्णित उनकी शरीरसम्पत्ति से कल्पना में आ सकता है। उनका जीवन बहुत ही शान्त, निर्द्वन्द्व तथा कषाय की मंदता वाला होता है। उनमें स्वार्थलिप्सा भी बहुत कम होती है।
उक्त विस्तृत वर्णन का उद्देश्य यही प्रदर्शित करना है कि तीन पल्योपम जितने दीर्घकाल तक और जीवन की अन्तिम घड़ी तक यौवन-अवस्था में रहकर इच्छानुकूल एवं श्रेष्ठ से श्रेष्ठ भोगों को भोगकर भी मनुष्य तृप्त नहीं हो पाता। जीवन पर्यन्त अतृप्ति बनी ही रहती है। प्रस्तुत सूत्र में युगलों को बत्तीस प्रशस्त लक्षणों का धारक कहा गया है। वे बत्तीस लक्षण इस प्रकार होते हैं
(१) छत्र, (२) कमल, (३) धनुष, (४) उत्तम रथ, (५) वज्र, (६) कूर्म, (७) अंकुश, (८) वापी, (९) स्वस्तिक, (१०) तोरण, (११) सर, (१२) सिंह, (१३) वृक्ष, (१४) चक्र, (१५) शंख, (१६) गज-हाथी, (१७) सागर, (१८) प्रासाद, (१९) मत्स्य, (२०) यव, (२१) स्तम्भ, (२२) स्तूप, (२३) कमण्डलु, (२४) पर्वत, (२५) चामर, (२६) दर्पण, (२७) वृषभ, (२८) पताका, (२९) लक्ष्मी, (३०) माला, (३१) मयूर, और (३२) पुष्प। (जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति २/२८)
Elaboration-The description in these aphorisms is that of Devakuru and Uttarkuru area. Yet it should be understood that similar account is of all the thirty akarm areas and 56 middle islands (Antardveep). It appears that Devakuru and Uttarkuru have been specifically mentioned because they are the best among them.
The human beings of akarm area are called Yugalik because they take birth as twins-one male and the other female this son and daughter pair later on becomes husband and wife and gives birth to one couple. They do not have any more offspring.
श्रु.१, चतुर्थ अध्ययन : अब्रह्म आश्रव
(209) Sh.1, Fourth Chapter: Non-Celibacy Aasrava
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