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रेखाएँ चिकनी होती हैं तथा चन्द्र, सूर्य, शंख, चक्र और दक्षिणावर्त स्वस्तिक के आकार से अंकित होती ! में हैं। यानी सूर्य, चन्द्रमा, शंख, श्रेष्ठ चक्र, दिक्-स्वस्तिक आदि विभिन्न आकृतियों से युक्त उनकी
हस्तरेखाएँ होती हैं। उनके कंधे उत्तम जाति के बलवान महिष, सूअर, सिंह, व्याघ्र, सांड और गजेन्द्र के । कंधों के समान परिपूर्ण और पुष्ट होते हैं। उनकी गर्दन चार अंगुल प्रमाण वाली एवं शंख जैसी सुन्दर :
होती है। उनकी दाढ़ी-मूंछे सदा एक सरीखी अलग-अलग दिखाई देने वाली और शोभादायक होती हैं। । उनकी ठुड्डी पुष्ट, माँसल, प्रशस्त, बाघ की ठुड्डी की तरह विस्तीर्ण-चौड़ी होती है। उनके नीचे के !
ओठ शुद्ध मूंगे तथा बिम्बफल के सदृश लाल होते हैं। उनके दाँतों की पंक्ति चन्द्रमा के टुकड़े, निर्मल : शंख, गाय के दूध, समुद्रफेन, कुन्दपुष्प, जलकण और कमलिनी के पत्ते पर पड़े हुए जलबिन्दु या कमल, की नाल की तरह श्वेत-धवल होती है। उनके दाँत अखण्डित होते हैं; बिना टूटे, सघन, चिकने और ! सुरचित एक-दूसरे से सटे हुए होते हैं। उनके बत्तीस दाँत एक ही दाँत की पंक्ति के समान होते हैं। ___उनके तलुए और जीभ का तलप्रदेश तपाये हुए निर्मल सोने के समान लाल-लाल होते हैं। उनकी । नासिका गरुड़ की नाक के समान, लम्बी, सीधी और ऊँची उठी हुई होती है। उनके नेत्र खिले हुए श्वेत । कमल के समान होते हैं तथा उनकी आँखें सदा प्रसन्न रहने के कारण विकसित धवल पपनी वाली होती ! हैं। उनकी भौहें किंचित् नीचे झुके हुए धनुष के समान सुन्दर तथा जमे हुए काले-काले बादलों की रेखा , के समान आकारयुक्त काली, समुचित लम्बी-चौड़ी और सुन्दर होती हैं। उनके कान परस्पर सटे हुए ५ प्रमाणोपेत होते हैं; जिनसे वे खूब अच्छी तरह सुन सकते हैं। अथवा उनके कान अच्छी तरह सुनने की, शक्ति वाले होते हैं। उनके गाल तथा आसपास का भाग पुष्ट और माँस से भरे होने से लाल-लाल प्रतीत " होते हैं। कुछ ही समय पहले उदित हुए बाल-चन्द्रमा के आकार के समान उनका विशाल ललाट होता । है। उनका मुख-मण्डल पूर्ण चन्द्रमा के समान ही सौम्य होता है। मस्तक छत्र के समान उभरा हुआ होता । है। सिर का अग्र भाग लोहे के मुद्गर के समान सुदृढ़ नसों से आबद्ध, उत्तम लक्षणों-चिन्हों से " सुशोभित, शिखरयुक्त भवन तथा गोलाकार पिण्ड के समान होता है। उनके मस्तक की त्वचा (चमड़ी) अग्नि से तपाये एवं धोये हुए सोने-सी निर्मल, लाल तथा बीच में केशों से युक्त होती है। उनके मस्तक के बाल सेमर वृक्ष के फल के समान अत्यन्त घने, घिसे हुए से-बारीक, कोमल, सुस्पष्ट, प्रशस्त-चिकने, उत्तम लक्षण से युक्त, सुवासित और सुन्दर होते हैं तथा भुजमोचकरत्न के समान काले, नीलमणि, काजल, गुनगुनाते हुए प्रसन्न भौंरों के झुण्ड के समान काली कान्ति वाले, झुण्ड के झुण्ड इकट्ठे, टेढ़ेमेढ़े-घुघराले एवं दाहिनी ओर मुड़े हुए होते हैं। उनके शरीर के अवयव सुडौल, सुरचित व यथा प्रमाण होते हैं। ___वे यौगलिक उत्तम लक्षणों, तिल आदि व्यंजनों तथा गुणों से सम्पन्न होते हैं। वे प्रशस्त उत्तमोत्तम शुभ-बत्तीस लक्षणों के धारक होते हैं। उनका स्वर हंस के समान, क्रौंच पक्षी के समान, दुन्दुभि के वादक एवं सिंह की गर्जना के समान होता है। उनका स्वर ओघ अविच्छिन्न और अत्रुटित होता है। उनकी ध्वनि मेघ की गर्जना जैसी होती है, अतएव कानों को प्रिय लगती है। उनका स्वर-आवाज और .
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श्रु.१, चतुर्थ अध्ययन : अब्रह्म आश्रव
( 205 ) Sh.1, Fourth Chapter: Non-Celibacy Aasrava
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