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wosferes 17617317417 SENSUAL ENJOYMENTS OF MANDALIK KINGS ॐ ८७. भुज्जो मंडलिय–णरवरिंदा सबला सअंतेउरा सपरिसा सपुरोहियामच्च-दंडणायग-सेणावइ
मंतणीइ-कुसला णाणामणिरयणविपुल-धणधण्णसंचयणिही-समिद्धकोसा रज्जसिरिं विउलमणुहवित्ता विक्कोसंता बलेण मत्ता ते वि उवणमंति मरणधम्मं अवितत्ता कामाणं।
८७. इसी तरह माण्डलिक राजा (विशाल राज्य का स्वामी) भी होते हैं। वे भी अत्यन्त बलवान ॐ अथवा सैन्य बल-सम्पन्न होते हैं। उनका अन्तःपुर विशाल होता है। वे परिवार या परिषदा से युक्त होते के हैं। शान्तिकर्म करने वाले पुरोहितों से, मंत्रियों से, दंडाधिकारियों-दंडनायकों से, सेनापतियों से जो गुप्त ॐ मंत्रणा करने में कुशल एवं नीति निपुण होते हैं। अनेक प्रकार की मणियों, रत्नों, विपुल धन और धान्य ॐ आदि से उनके भण्डार समृद्ध होते हैं। वे अपनी विपुल राज्य-लक्ष्मी का भोगोपभोग करके, अपने
शत्रुओं को जीतकर अक्षय भण्डार के स्वामी होकर (अपने) अपनी शक्ति के दर्द में चूर रहते हैं। ऐसे माण्डलिक राजा भी कामभोगों से तृप्त नहीं हुए। वे भी अतृप्त रहकर ही मृत्यु को प्राप्त हो गये।
87. Mandalik kings are also rulers of vast kingdoms. They are also extremely healthy and have great military strength. They have a family and cabinet. Their advisors consist of priests who perform activities for their peace, ministers, police chief and army general with whom they discuss secret plans as they are expert in administration. Their treasure is full of many types of precious stones, jewels, money and other articles. They are proud of their power in view of their vast kingdom. They enjoy the pleasures of the great treasure accumulated by defeating the
enemies. Such Mandalik rules are also not satisfied with the means of ॐ their sensual enjoyments. They also died in a state of dis-satisfaction. अकर्मभूमिज मनुष्यों के भोग ENJOYMENTS OF MEN OF LANDS OF NON-ACTION
अब शास्त्रकार ने यहां उत्तरकुरु-देवकुरु क्षेत्र के भोग सम्पन्न मनुष्यों के वैभव और कामभोग E साधनों की चर्चा की है और उनकी भी अतृप्ति का प्रतिपादन किया है -
Now the author discusses the wealth and enjoyments of humans of lands of non-action like Uttar-Kuru and Dev-Kuru and conveys the " ensuing dissatisfaction.
८८. भुज्जो उत्तरकुरु-देवकुरु-वणविवर-पायचारिणो णरगणा भोगुत्तमा भोगलक्खणधरा भोगसस्सिरीया पसत्थसोमपडिपुण्णरूवदरिसणिज्जा सुजायसव्गसुंदरंगा रत्तुष्पलपत्तकंतकरचरण9 कोमलतला सुपइट्ठियकुम्मचारुचलणा अणुपुव्वसुसंहयंगुलीया उण्णयतणुतंबणिदणक्खा
संठियसुसिलिट्ठगूढगुंफा एणीकुरुविंदवत्तवट्टाणुपुग्विजंघा समुग्गणिसग्गगूढजाणू वरवारणमत्ततुल्लविक्कमके विलासियगई वरतुरग-सुजायगुज्झदेसा आइण्णहयव्वणिरुवलेवा। 卐 श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
Shri Prashna Vyakaran Sutra
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