________________
555555555555555555555555555555555559
८२. जिनकी बुद्धि मोह से मोहित हो रही है, ऐसे देवगण उस अब्रह्म नामक पापास्रव का अपनी अप्सराओं (देवांगनाओं) के साथ (मैथुन कर) सेवन करते हैं। वे देव इस प्रकार हैं- (१) असुरकुमार, (२) नागकुमार, (३) गरुड़कुमार (सुपर्णकुमार), (४) विद्युत्कुमार, (५) अग्निकुमार, (६) द्वीपकुमार, (७) उदधिकुमार, (८) दिशाकुमार, (९) पवनकुमार, तथा (१०) स्तनितकुमार, ये दस प्रकार के भवनवासी देव।
(१) अणपन्निक, (२) पणपन्निक, (३) ऋषिवादिक, (४) भूतवादिक, (५) क्रन्दित, (६) महाक्रन्दित, (७) कूष्माण्ड, और (८) पतंग देव (ये आठ व्यन्तर देवों के प्रकार हैं)।
(१) पिशाच, (२) भूत, (३) यक्ष, (४) राक्षस, (५) किन्नर, (६) किम्पुरुष, (७) महोरग, और (८) गन्धर्व (ये भी आठ प्रकार के निम्न जाति के वाणव्यन्तर देव हैं)।
मध्य लोक में विमानों में निवास करने वाले ज्योतिष्क देव तथा मनुष्यगण, तथा जलचर, स्थलचर एवं खेचर (ये तिर्यंच पंचेन्द्रिय जातीय जीव) अब्रह्म का सेवन करते हैं।
जिनका मन मोह से ग्रस्त हो गया है, जिनको प्राप्त हुए कामभोग सम्बन्धी तृष्णा का अन्त नहीं हुआ है और जो अप्राप्त कामभोगों के लिए तृष्णातुर हैं, जो तीव्र एवं बलवती भोग तृष्णा से बुरी तरह पीड़ित हैं-जिनके मानस को प्रबल काम-लालसा ने पराजित कर दिया है, जो विषयों में अत्यन्त आसक्त एवं अतीव मूर्छित हैं-कामवासना की तीव्रता के कारण जिन्हें उससे होने वाले दुष्परिणामों का भान नहीं है, जो अब्रह्मचर्यरूपी कीचड़ में फंसे हुए हैं और जो तामसभाव-अज्ञानमय जड़ता से मुक्त नहीं हुए हैं, ऐसे (देव, मनुष्य और पंचेन्द्रिय तिर्यंच) अन्योन्य-परस्पर नर-नारी के रूप में अब्रह्म (मैथुन) का सेवन करते हुए अपनी आत्मा को दर्शनमोहनीय और चारित्रमोहनीय कर्म के पिंजरे में डालते हैं, अर्थात् वे अपने आपको मोहनीय कर्म के बन्धन से ग्रस्त करते हैं।
82. Such celestial beings whose intellect is adversely affected with delusion, engage in the sin of non-celibacy by cohabitation with goddesses. There are ten types of celestial beings called Bhavanavasi (celestial beings living in abodes). They are (1) Asur Kumar, (2) Nag Kumar, (3) Garud Kumar (Suparn Kumar), (4) Vidyut Kumar, (5) Agni Kumar, (6) Dveep Kumar, (7) Udadhi Kumar, (8) Disha Kumar, (9) Pavan Kumar and (10) Stanit Kumar,
There are eight types of Vyantar gods. They are (1) Anpannik, (2) Panapannik, (3) Rishivadik, (4) Bhootavadik, (5) Krandit, (6) Mahakrandit, (7) Kooshmand and (8) Patang.
There are eight types of Vanavyantar devas (of lower status). They are (1) Pishach, (2) Bhoot, (3) Yaksh, (4) Rakshas, (5) Kinnar, (6) Kimpurish, (7) Mahorag and (8) Gandharv.
श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
(184)
Shri Prashna Vyakaran Sutra
步步步步步555555555555555555555555555555
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org