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________________ S)) ) ) ) ) ) )) ))) ) ) )) ) ) ))) )) )) %% % % % %% % 四hhhhhhhhhhhhhhhhh %% % 9 भोगे बिना छुटकारा नहीं NO RELIEF WITHOUT EXPERIENCING ७८. आसापास-पडिबद्धपाणा अत्थोपायाण-काम-सोक्खे य लोयसारे होति अपच्चंतगा य सुटु के वि य उज्जमंता तद्दिवसुज्जुत्त-कम्मकय-दुक्खसंठवियसिस्थपिंडसंचयपरा पक्खीण्णदव्वसारा णिच्चं अधुव धण-धण्णकोस-परिभोगविवज्जिया रहिय-कामभोग-परिभोग-सब्बसोक्खा परसिरिभोगोवभोगणिस्साणमग्गणपरायणा वरागा अकामियाए विणेति दुक्खं। णेव सुहं णेव णिव्युइं उवलभंति अच्चंतविउलदुक्खसय-संपलित्ता परस्स दब्बेहिं जे अविरया। __ एसो सो अदिण्णादाणस्स फलविवागो, इहलोइओ परलोइओ अप्पसुहो बहुदुक्खो महत्भओ बहुरयप्पगाढो दारुणो कक्कसो असाओ वाससहस्सेहिं मुच्चइ, ण य अवेयइत्ता अत्थि उ मोक्खोति। म ७८. अदत्तादान का पाप करने वालों के प्राण भवान्तर में भी अनेक प्रकार की आशाओं-कामनाओं के पाश में बँधे रहते हैं। जगत् में सारभूत माने जाने वाले अर्थोपार्जन एवं ! कामभोगों के सुख के लिए अच्छी तरह प्रबल प्रयत्न करने पर भी उन्हें उचित सफलता प्राप्त नहीं होती। में उन्हें प्रतिदिन कड़ा परिश्रम करने पर भी बड़ी कठिनाई से इधर-उधर बिखरा या फेंका भोजन का अंश, म ही नसीब होता है, थोड़े-से दाने ही मिलते हैं। कदाचित् कोई उत्तम द्रव्य मिल जाये तो वह भी हाथ से * निकल जाता है, अर्थात् प्राप्त धन भी क्षीण हो जाता है। इस अस्थिर धन, धान्य और कोश के भोग से वे । सदा ही वंचित रहते हैं। काम-(शब्द और रूप के विषय) तथा भोग-(गन्ध, स्पर्श और रस के विषय) के भोगोपभोग के सेवन से प्राप्त होने वाले समस्त सुख से भी वे वंचित रहते हैं। वे संस्कारवश दूसरों की लक्ष्मी के भोग और उपभोग को अपने अधीन बनाने के प्रयास में तत्पर रहते हुए भी वे बेचारे केवल दुःख के ही भागी होते हैं। उन्हें न तो सुख नसीब होता है, न शान्ति। सारांश यह है कि जो दूसरों के द्रव्य को हरण करने की इच्छा से निवृत्त नहीं होते, अदत्तादान का परित्याग नहीं करते, वे अत्यन्त एवं प्रचुर सैकड़ों दुःखों की आग में जलते रहते हैं। ___ अदत्तादान पाप का यह फलविपाक है, बँधे कर्मों का कटु परिणाम है। जो इस लोक में और परलोक-आगामी भवों में भी भोगना होता है। यह सुख से रहित है और बहुत दुःख देने वाला है। अत्यन्त भयानक है। अतीव प्रगाढ़ कर्मरूपी रज वाला है। बड़ा ही दारुण है, कर्कश-कठोर है, ॥ असातामय है और हजारों वर्षों में इससे पिण्ड छूटता है, किन्तु इसे भोगे बिना छुटकारा नहीं मिलता। 78. Those who commit the sin of Adattadan, they remain in the bondage of hopes and desires of many types even after the present lifespan. They do not achieve any success even after serious efforts to collect money for enjoying sensual pleasures, which they consider as essence of life. Everyday only after serious efforts with great difficulty they get a bit of food stuff scattered hither and thither or that which has been thrown away. They get only a little amount of food grains. If sometimes they get some good food that also gets lost. They always remain deprived F of this unstable money, cereals and treasure for personal enjoyment. They remain deprived of all the worldly enjoyments through kaam ת ת ת नाना गाना | श्रु.१, तृतीय अध्ययन : अदत्तादान आश्रव ( 175 ) Sh.1, Third Chapter : Stealing Aasrava 195555555555555555555555EEEEER Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002907
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Varunmuni, Sanjay Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2008
Total Pages576
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_prashnavyakaran
File Size19 MB
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