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They say that it is good that the said criminal has died or has been killed. The people feeling satisfied at his end, condemn him. Thus the condemned thieves even after their death bring dishonour to their relatives for a long time.
विवेचन : उक्त सूत्र पाठ में चोरों को राज्य शासन द्वारा दी जाने वाली असह्य प्राणान्तक यातनाओं का सजीव चित्रण किया है। जिसे पढ़-सुनकर ही हृदय में कँपकँपी छूट जाती है। यह उस युग में दी जाने वाली यातनाओं का यथार्थ वर्णन है। इसका उद्देश्य यही है कि इसे पढ़-सुनकर चौर्य कर्म से विरक्ति हो सके।
अगले सूत्र में मरकर नरकगति आदि में जाने पर प्राप्त होने वाली वेदनाओं का वर्णन है।
Elaboration-In the aphorism a vivid pictures of unbearable death-like tortures given to thieves by state administration has been shown. One feels awe-stricken to hear or go through such an account. It is the factual description of the punishment awarded in those days. The purpose of narrating them is that after reading them or listening to them, one may avoid stealing completely.
In the succeeding aphorism, there is a description of the pain and tortures they receive when they are re-born in hell. पाप और दुर्गति की परम्परा SIN AND THE TRADITION OF BAD EXISTENCE
७६. मया संता पुणो परलोग-समावण्णा णरए गच्छंति णिरभिरामे अंगार-पलित्तककप्पअच्चत्थ-सीयवेयण-अस्साउदिण्ण-सययदुक्ख-सय-समभिदुए, तओ वि उव्वट्टिया समाणा पुणो वि पवज्जंति तिरियजोणिं तहिं पि णिरयोवमं अणुहवंति वेयणं, ते अणंतकालेण जइ णाम कहिं वि मणुयभावं लभंति णेगेहिं णिरयगइ-गमण-तिरिय-भव-सयसहस्स-परिय हिं। तत्थ वि य भवंतऽणारिया णीयकुल-समुप्पण्णा। ___ आरियजणे वि लोगबज्झा तिरिक्खभूया य अकुसला कामभोगतिसिया जहिं णिबंधंति णिरयवत्तणिभवप्पवंचकरण-पणोल्लि पुणो वि संसारावत्तणेममूले धम्मसुइ-विवज्जिया अणज्जा कूरा मिच्छत्तसुइपवण्णा य होंति एगंत-दंड-रुइणो वेढ्ता कोसिकारकीडोव्व अप्पगं अट्ठकम्मतंतु-घणबंधणेणं।
७६. (चोर अपने दुःखमय जीवन का अन्त होने पर) परलोक में नरकगति में उत्पन्न होते हैं। नरक में सब कुछ अशभ व अशुभतर ही है। वह स्थान आग से जलते हए घर के समान (अतीव उष्ण वेदना वाला या) तथा अत्यन्त शीत वेदना वाला होता है। (तीव्र) असातावेदनीय कर्म के उदय के कारण सैकड़ों दुःखों से व्याप्त है। (नरक की लम्बी आयु पूरी करने के पश्चात्) नरक से उद्वर्तन करके निकलकर फिर तिर्यंचयोनि में जन्म लेते हैं। वहाँ भी वे नरक-जैसी असातावेदना का अनुभव करते हैं। उस तिर्यंचयोनि में अनन्त काल तक भटकते हैं। किसी प्रकार अनेकों बार नरकगति और लाखों बार
श्रु.१, तृतीय अध्ययन : अदत्तादान आश्रव
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Sh.1, Third Chapter: Stealing Aasrava
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