SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 216
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ )) क ))) ))))) 9卐धम _प्रस्तुत पाठ में अठारह प्रकार के चोरों या चौर्य प्रकारों का उल्लेख किया गया है। वे अठारह प्रकार ये हैं भलनं कुशलं तर्जा, राजभागोऽवलोकनम्। आमर्गदर्शनं शय्या, पदभंगस्तथैव च॥१॥ विश्रामः पादपतनमासनं गोपनं तथा। खण्ड स्यखादनं चैव, तथाऽन्यन्माहराजिकम्॥२॥ पद्याग्न्युदकरज्जूनां प्रदानं ज्ञानपूर्वकम्। एता प्रसूतयो ज्ञेया अष्टादश मनीषिभिः॥३॥ १. डरते क्यों हो? मैं तुम्हारा बाल बाँका नहीं होने दूंगा, इस प्रकार चोर को प्रोत्साहन देना। २. चोर के मिलने पर उससे कुशल-क्षेम पूछना। ३. चोर को चोरी के लिए हाथ आदि से इशारा करना। ४. राजकीय कर-टैक्स नहीं देना या चुराना। ५. चोरी करते देखकर भी मौन रह जाना। ६. चोरों की खोज करने वालों को विपरीत मार्ग बताना। ७. चोरों को सोने के लिए शय्या आदि देना। ८. चोरों के पैरों के निशान मिटाना। ९. चोर को अपने घर में छिपाना या विश्राम देना। १०. चोर को नमस्कार करके सन्मान देना। ११. चोर को 'आइये, बैठिये' कहकर आसन आदि देना। १२. चोर को छिपाना-छिपाकर रखना। १३. चोर को प्रेमपूर्वक मिठाई आदि खिलाना। १४. चोर को गुप्त रूप से आवश्यक वस्तुएँ भेजना या ‘महाराज' आदि सूचक शब्दों से पुकारना। १५. थकावट दूर करने के लिए चोर को गर्म पानी, तेल आदि देना। १६. भोजन पकाने आदि के लिए चोर को अग्नि देना। १७. चोर को पीने के लिए ठण्डा पानी देना। १८. चोर को चोरी करने के लिए अथवा चोरी करके लाये पशु को बाँधने के लिए रस्सी-रस्सा देना। ___ ये अठारह दोष चोरी की प्रसूति-उत्पत्ति के कारण हैं। चोरों के साथ जानबूझकर पूर्वोक्त व्यवहार करने वाले को चोरी का दोष लगता है। चौरश्चौरार्पको मंत्री, भेदज्ञः काणकक्तयी। अन्नदः स्थानदश्चैव, चोरः सप्तविधः स्मृतः॥ )))))))))))))))) ) 5 9 कभभभभभ5555 9 श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र (158) Shri Prashna Vyakaran Sutra B5555555555555555555555555555555558 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002907
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Varunmuni, Sanjay Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2008
Total Pages576
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_prashnavyakaran
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy