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चित्र-परिचय |
Illustration No. 9
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चोरों को बन्दीगृह में होने वाले दुःख-दण्ड-यातनाएँ
अपनी इन्द्रियों के गुलाम होकर पराये धन को लूटने की लालसा रखने वाले चोरों को दिये जाने वाले उग्रतम दण्डों का चित्रण यहाँ किया गया है।
राज्यकर्मियों द्वारा पकड़े जाने पर उन्हें चाबुकों से पीटा जाता है। लोहे की बेड़ियाँ हाथ-पैरों में डाल दी जाती हैं। काष्टमय बन्धनों के सिरे पर लकड़ी बाँधकर हथकड़ी से हाथ-पैर बाँध दिये 5 जाते हैं। लोहे के पिंजरे में बन्द कर तपी हुई सलाईयों से उनके शरीर को गोद दिया जाता है। उनके
शरीर को बसूले से छीलकर घावों पर नमक छिड़क दिया जाता है। राजमार्ग या सार्वजनिक स्थानों ॐ पर उल्टा लटकाकर अंग-अंग काट दिये जाते हैं। कभी-कभी लोहे के घन से हथेली का कचूमर
निकाल दिया जाता है। उन्हें बाँधकर उनके ऊपर शृगाल और कुत्ते छोड़ दिये जाते हैं। जो उनके अंगों की 卐 को नोच-नोचकर खा जाते हैं।
चित्र को देखने से स्पष्ट हो जाता है कि प्राचीनकाल में चोरी करना कितना भीषण अपराध माना जाता था और चोरी करने वालों को कितने भीषण दण्ड दिये जाते थे।
-सूत्र 72, पृ. 150
TORMENT GIVEN TO THIEVES
This illustration presents the extreme punishment given to the thieves who, being slaves of their senses, deprive others of their wealth.
When apprehended by state officials they are whipped and shackled with iron chains. After being shackled they are put in wooden traps. They are put in iron cage and pierced with hot iron rods. Their body is torn with planers and salt is sprinkled on the wounds. They are hanged upside down in public places and sliced. Also, their palms are crushed with a blow of heavy hammer. They are tied and thrown to jackals and dogs that snatch at and cut their body.
The illustration reveals that in ancient times theft was considered a very serious crime and extreme punishment was given for it.
- Sutra-72, page-120
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