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आगमों का अंग्रेजी भाषांतर क्यों ?
वैश्वीकरण (Globalisation) के इस युग में हर व्यक्ति की यह धारणा बन गई है कि "अंग्रेजी पढ़ने-समझने वाला व्यक्ति ही आगे जाकर सफल हो सकता है।" इस मान्यता से संस्कृत, प्राकृत तो ठीक. पर हमारी मातभाषा भी मत प्रायः स्थिति में आ गई है। जब प्राकृत, संस्कृत या हिन्दी-पंजाबी का अक्षर ज्ञान ही नहीं रहेगा तो हम आने वाली पीढ़ियों को आगम ज्ञान से परिचित कैसे करवायेंगे?
जैसा कि आपको विदित है कि जब हमारा प्राकृत-संस्कृत का ज्ञान अल्प हुआ तो हमारे पूर्वजों ने हिन्दी भाषांतर देकर आगमों के ज्ञान का अमृत हमें पिलाया और अब जबकि हमारे युवकों को हिन्दी का अक्षर ज्ञान कम होता जा रहा है और अंग्रेजी भाषा के प्रति ही उनका रुझान बढ़ रहा है तो हमारा कर्त्तव्य है कि हम आगमों का अंग्रेजी अनुवाद करके आगम-अमृत को अपनी नई पीढ़ी तक पहुँचाएँ और उन्हें अमर बनने का मार्ग दिखायें। इसी के साथ जो अहिंदी भाषी विदेशी जिज्ञासुजन हैं, वे भी इस माध्यम द्वारा जिनवाणी से लाभान्वित हो सकें।
आगम सम्पादन के महत्वपूर्ण कार्य का निर्वहन करने में पूज्य गुरुदेव उत्तर भारतीय प्रवर्तक भण्डारी श्री पद्मचन्द्र जी म. की प्रेरणा, प्रोत्साहन तथा आशीर्वाद सदा मेरे साथ रहा है। वास्तव में तो उन्हीं की कृपा से यह अत्यन्त गुरुतर कार्य भी सहज ही सम्पादित हो रहा है। गुरुजनों का आशीर्वाद पग-पग पर हमारा सम्बल व मार्गदर्शक बना हुआ है।
प्रश्नव्याकरण सूत्र के सम्पादन में मेरे शिष्य वरुण मुनि जी व स्व. श्री श्रीचन्द जी सुराना 'सरस' के सुपुत्र श्री संजय सुराना का आत्मीय सहयोग विशेष रूप से रहा है।
प्रश्नव्याकरण सूत्र के अंग्रेजी अनुवाद का महत्त्वपूर्ण दायित्व निभाया है आगमों के विशेष अभ्यासी, गृहस्थ में साधु वृत्ति जैसी जीवन यात्रा करने वाले विद्वान विचारक सुश्रावक श्री राजकुमार जी जैन ने। साथ ही श्री सुरेन्द्र बोथरा जी ने भी अंग्रेजी अनुवाद कार्य का पुनरीक्षण कर आवश्यक संशोधन आदि किये हैं, इन सभी को हार्दिक साधुवाद।
___ पूज्य गुरुदेव की कृपा से आगम सेवा करने वाले गुरुभक्तों ने इस प्रकाशन में हर वर्ष की भाँति दिल खोलकर अपना सहयोग दिया है। उनके सहयोग के बल पर ही संस्था यह व्ययसाध्य प्रकाशन कर रही है।
इस प्रकार इस कार्य में जिन-जिन सहृदयों का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष सहयोग प्राप्त हुआ है, मैं उन सबके प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ।
-प्रवर्तक अमर मुनि
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