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प्रश्नव्याकरण सूत्र प्रश्नव्याकरण अर्थात् प्रश्नों का व्याकरण समाधान, उत्तर।
मानव मन में सदा से यह प्रश्न उठता रहा कि राग-द्वेष जनित वे कौन-से भयंकर विकार जो आत्मा को मलिन करके दुर्गति में ले जाते हैं औ इनसे कैसे बचा जाए? इन प्रश्नों के समाधा स्वरूप प्रश्नव्याकरण सूत्र में मन के इन विकारों व विस्तृत वर्णन किया गया है। इन्हें आगम की भाषा आश्रव कहते हैं। ये आश्रव हैं-हिंसा, असत्य चौर्य, अब्रह्मचर्य और परिग्रह। इन आश्रवों व स्वरूप और उनसे होने वाले दु:खों को इस सूत्र भलीभाँति समझाया गया है। ___साथ ही इन पाँच आश्रवरूपी शत्रुओं बचने हेतु अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य ए अपरिग्रह-यह पाँच संवर बताये गये हैं। सर्वर भावित आत्मा, राग-द्वेष जनित विकारों से दूर रहत
भगवन् ! प्रश्नव्याकरण सूत्र का प्रतिपाद्य विषय क्या है? और यह किसके
लिए उपयोगी है?
आश्रव-संवर वर्णन में ही समग्र जिन प्रवच का सार आ जाता है।
प्रश्नव्याकरण सूत्र में आश्रव और संवर व विशेष विवेचन प्रस्तुत किया गया है।
सुधर्मा स्वामी
जम्बूस्वामी
PRASHNAVYÄKARAN SUTRA
Prashnavyākaran means the gramma of questions, solution and answer.
Human mind is always faced with th question that what are those terribl perversions caused by attachment an aversion that tarnish the soul and push it to tormenting rebirth, and how to avoid them In order to answer these question Prashnavyākaran Sutra starts by givin detailed description of these perversions. I Agamic terms they are called Aashravas They are - violence, falsity, stealing non-celibacy and covetousness. Thi Sutra vividly explains the definitions o these Aashravas and the miseries caused b them.
In order to protect oneself from thes five Aashravas, the tormenters of mind, fiv Samvars have been defined. They are - Ahimsa, truth, non-stealing, celibac and non-covetousness. A soul energize by Samvar remains free of the perversion caused by attachment and aversion.
The descriptions of Aashrava an Samvar encapsulate the gist of the whol sermon of the Jina.
Prashnavyākaran Sutra has a vivid an lucid elaboration of Aashrava and Samvar.
हे वत्स! प्रश्नव्याकरण सूत्र में हिंसा आदि पाँच आस्रवों और अहिंसा आदि पाँच संवरों का विस्तृत वर्णन है, इसके अध्ययन से साधक अपने जीवन का यथार्थ लक्ष्य बोध-प्राप्त कर सकता है। वास्तव में यह आत्महित में
अत्यन्त उपयोगी है।
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