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स्थानांग में प्रश्नव्याकरण के 10 अध्ययनों का उल्लेख है। जो क्रमशः इस प्रकार है-उपमा, संख्या, ऋषिभासित, आचार्यभाषित, महावीरभाषित, क्षौमकप्रश्न, कोमलप्रश्न, अद्दागप्रश्न, अंगुष्ठप्रश्न
और बाहुप्रश्न। समवायांग और नंदीसूत्र में बताया गया है कि प्रश्नव्याकरण में 108 प्रश्न, 108 अप्रश्न, 108 प्रश्नाप्रश्न हैं। अंगुष्ठ प्रश्न, बाहुप्रश्न, दर्पणप्रश्न आदि विचित्र विद्यातिशयों के वर्णन हैं। नागकुमारों व सुवर्णकुमारों की संगति के दिव्य संवाद हैं। 45 अध्ययन, 45 उद्देशन काल, 45 समुद्देशन काल, संख्यात हजार पद हैं।
लेकिन वर्तमान में उपलब्ध प्रश्न व्याकरण में ऐसी कोई चर्चा नहीं है। वर्तमान प्रश्नव्याकरण सूत्र में नये विषय लेने का प्रयोजन कदाचित् भावी अहित की आशंका से किसी सुविज्ञ अनुभवी आचार्य ने मन्त्रादिक विषयक प्रश्नों को छोड़कर केवल पाँच आश्रव और पाँच संवर का विषय प्रतिष्ठापित कर दिया है। वर्तमान विषय वास्तव में आत्महित में अत्यन्त उपयोगी है। पाप के स्वरूप को समझकर त्याग करना ही आत्मोत्थान का प्रधान विषय है। अन्य किसी मूल-सूत्र में इस विषय का इतना विशद विवेचन नहीं है। आश्रव और संवर ही हेय और उपादेय के रूप में जैन साधना के केन्द्र बिन्दु हैं। जो भावतः तीर्थंकरों द्वारा प्रतिपादित होने के कारण परम्परा से चले आ रहे हैं। इसके सम्बन्ध में वृत्तिकार अभयदेव सूरि लिखते हैं-"इस समय का कोई अनधिकारी मनुष्य चमत्कारिक विद्याओं का दुरुपयोग न करे इस दृष्टि से वे विद्यायें इस सूत्र में से निकाल दी गईं और केवल आश्रव और संवर का समावेश कर दिया गया।" आचार्य जिनदास महत्तर ने शक संवत् 500 की समाप्ति पर नन्दीसूत्र पर चूर्णि की रचना की है। उसमें सर्वप्रथम वर्तमान प्रश्नव्याकरण के विषय से सम्बन्धित पाँच संवर आदि का उल्लेख है। इसका अर्थ यह है कि शक संवत् 500 से पूर्व ही प्रस्तुत प्रश्नव्याकरण सूत्र का निर्माण एवं प्रचार-प्रसार हो चुका था और उसे अंग साहित्य में मान्यता मिल चुकी थी। अब हम प्रश्नव्याकरण सूत्र के विषयों पर थोड़ा प्रकाश डालेंगे। वर्तमान प्रश्नव्याकरण सूत्र का विषय
__ प्रस्तुत प्रश्नव्याकरण सूत्र में दो श्रुतस्कंध हैं। प्रथम स्कंध में हिंसा आदि पाँच आश्रवों का और द्वितीय स्कंध में अहिंसा आदि पाँच संवरों का वर्णन है। आश्रवों और पाँच संवरों के 5-5 द्वार हैं।
प्रथम श्रुतस्कंध के पाँचों द्वारों में जम्बूस्वामी की पृच्छा के माध्यम से इसे पाँच-पाँच प्रश्नों में विभाजित किया गया है। जैसे कि प्रथम आश्रवद्वार हिंसा में-1. हिंसा-प्राणवध का स्वरूप क्या है? 2. प्राणवध के पर्यायवाची कौन-कौन से नाम हैं? 3. किन पापी जीवों द्वारा वह किया जाता है? 4. किस प्रकार किया जाता है? 5. इसका फल क्या है? इन पाँच प्रश्नों के द्वारा हिंसा आश्रव का मार्मिक और विस्तृत चित्रण किया गया है। इसी तरह असत्य, चौर्य, अब्रह्मचर्य और परिग्रह आश्रव का पाँच प्रश्नों द्वारा विस्तृत वर्णन किया गया है।
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