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कुछ अज्ञानी ऐसा मानते हैं कि जीवित बकरे या भैंसे की बलि चढ़ाने में पाप है, पर आटे के पिण्ड से उसी की आकृति बनाकर बलि देने में कोई बाधा नहीं है । किन्तु यह क्रिया भी घोर हिंसा का कारण होती है। कृत्रिम बकरे में बकरे का संकल्प होता है, अतएव उसका वध बकरे के वध के समान ही पापोत्पादक है। जैन ग्रन्थ में 5 काल शौकरिक का उदाहरण जो कुएँ में बैठा अपने शरीर के मैल से भैंसे बनाकर मैल के पिण्डों में भैंसों का संकल्प करके उनकी हत्या करता था। परिणामस्वरूप उसे नरक में जाना पड़ा।
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विवेचन प्रस्तुत सूत्र में वर्णित हिंसा के विविध स्वरूपों का आदेश - उपदेश देने वालों को अज्ञानी, 5 मिथ्यात्वी और अपनी आत्मा का अधःपतन करने वाले बताये हैं। कोई युद्ध आदि का उपदेश हो, या ग्रह शान्ति आदि के लिए यज्ञ, पशु बलि या शान्तिकर्म आदि हो, जिसमें भी जीवों की घात होती हो, वे सभी वचन और कार्य हिंसा के साधन होने से या जिनसे हिंसा की प्रेरणा व हिंसा को उत्तेजना मिलती है, वह मिथ्या भाषण है।
मिथ्या भाषण के विविध स्वरूपों का कथन करने के पश्चात् अब शास्त्रकार मृषावाद के भयानक फल का वर्णन करते हैं।
Elaboration-In the present aphorism, it has been mentioned that the persons who suggest or direct various type of violent activities, are ignorant of truth. They are of wrong faith and they adversely affect their soul. Whether the order be for engaging in war, for animal sacrifice in yajna to bring peace, if there is killing or hurting of living being in it than all such words or acts are false speech since they inspires violence.
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Some believe that it is a sin to sacrifice a living he-goat or a hebuffalo. But there is no harm in sacrificing such a shape made of kneaded flour. But in fact such an act is cause of dreadful violence 5 (himsa). In the artificial he-goat, one has in his mind the real he-goat. So by sacrificing it, he collects the same sin as he collects when he sacrifices a living he-goat. In Jain scriptures there is the example of Kaal butcher. He while in a well was collecting the moist dust from his body and preparing he-buffaloes with it and was killing them considering in his mind that he was killing he-buffaloes. As a result therefore, he was reborn in hell and suffers for his sins there.
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After narrating false speech of various types, the author describes the dreadful results of it.
मृषावाद का भयानक फल DREADFUL RESULTS OF FALSEHOOD
५८. तस्स य अलियस्स फलविवागं अयाणमाणा वड़्ढेंति महत्भयं अविस्सामवेयणं दीहकालं बहुदुक्खक रयतिरियजोणिं ।
ते य अलिएण समबद्धा आइद्धा पुणब्भबंधयारे भमंति भीमे दुग्गइवसहिमुवगया । ते य दीसंति इह दुग्गया दुरंता परवस्सा अत्थभोगपरिवज्जिया अहिया फुडियच्छवि-बीभच्छ - विवण्णा, खरफरुसविरत्तज्झामज्झसिरा, णिच्छाया, लल्लविफलवाया, असक्कयमसक्कया अगंधा अचेयणा दुभगा
श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
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Shri Prashna Vyakaran Sutra
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