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________________ 6 95 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 595555 5595 5 5 55 प्रकाशकीय दानों में श्रेष्ठ दान ज्ञानदान है। इस वचन पर चिन्तन करके आज से 16 वर्ष पूर्व परम श्रद्धेय प्रवर्त्तक श्री अमर मुनि जी म. सा. ने भगवत् वाणी रूप जैन सूत्रों का हिन्दी-अंग्रेजी अनुवाद करवाकर चित्र सहित प्रकाशन करने की महत्वपूर्ण योजना बनाई। सन् 1992 में हमने सर्वप्रथम सचित्र श्री उत्तराध्ययन सूत्र हिन्दी-अंग्रेजी अनुवाद सहित प्रकाशित किया। इस प्रकाशन को पाठकों और विद्वान वर्ग ने भरपूर सराहा। अब निरन्तर 16 वर्षों के प्रयास से श्रुत सेवा के इस कार्य में हम अपने लक्ष्य के निकट पहुँच रहे हैं। अब तक 21 सचित्र आगमों का प्रकाशन हो चुका है। इस वर्ष दो आगम ग्रन्थों का प्रकाशन हो रहा हैश्री प्रश्नव्याकरण सूत्र तथा श्री भगवती सूत्र (भाग-3) । श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र द्वादशांगी का दसवाँ अंग सूत्र है। इस सूत्र में पाँच आश्रव और पाँच संवरों का विस्तृत निरुपण किया गया है। इसके दो श्रुतस्कंध हैं। प्रथम श्रुतस्कंध में पाँच आश्रवों-हिंसा, मृषावाद, अदत्तादान, अब्रह्मचर्य और परिग्रह व द्वितीय श्रुतस्कंध में पाँच संवरों-अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का बहुत ही सांगोपांग वर्णन किया गया है। हमारा यह परम सौभाग्य है कि परम श्रद्धेय स्व. उत्तर भारतीय प्रवर्त्तक महास्थविर गुरुदेव भण्डारी श्री पद्मचन्द्र जी म. सा. के मंगल आशीर्वाद से प्रवर्तक श्री अमर मुनि जी म. सा. आगम सेवा के इस महान् पुण्य कार्य में हम सबको प्रेरणा और प्रोत्साहन प्रदान कर युग-युग तक चिरस्थायी रहने वाला ज्ञानदीप प्रज्वलित कर रहे हैं। इन आगमों के प्रकाशन में स्व. श्री श्रीचन्द जी सुराना 'सरस' (सम्पादक) तथा श्री सुरेन्द्र बोथरा, जयपुर एवं श्री राजकुमार जी जैन, दिल्ली (अंग्रेजी अनुवादक) का सहयोग हमें हमेशा प्राप्त होता रहा। श्री श्रीचन्द जी सुराना के स्वर्गवास के पश्चात् उनके पुत्र युवा साहित्यकार श्री संजय सुराना भी पूरे मनोयोग से इस कार्य में सहयोग प्रदान कर रहे हैं। आगमों के सम्पादन एवं प्रूफ संशोधन के गहन कार्य में गुरुदेव प्रवर्त्तक श्री अमर मुनि जी म. सा. शिष्य श्री वरुण मुनि जी भी एकाग्रता एवं समर्पण भाव से अपनी सेवायें दे रहे हैं। चित्रकार डॉ. त्रिलोक शर्मा ने इस आगम के चित्र बनाये हैं एवं श्री वरुण मुनि जी ने इनका मार्गदर्शन किया है। आगममाला का यह 22वाँ पुष्प सचित्र श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र आपके हाथों में पहुँचाते हुए हमें अति प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। हमेशा की तरह इस बार भी उदार गुरु भक्तों ने मुक्त हृदय से अर्थ-सहयोग देकर अपने अर्जित धन का सदुपयोग किया। गुरु भक्ति और वीतराग वाणी के प्रति उनके इस धर्म अनुराग का हम हृदय से स्वागत करते हैं। अन्त में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से इस कार्य से जुड़े सभी महानुभावों के हम हृदय से आभारी हैं। जिनके अथक परिश्रम से यह ग्रन्थ प्रकाशित होकर आपके हाथों में पहुँच सका। (५) Jain Education International நிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிதி - महेन्द्रकुमार जैन अध्यक्ष : पद्म प्रकाशन, दिल्ली For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002907
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Varunmuni, Sanjay Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2008
Total Pages576
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_prashnavyakaran
File Size19 MB
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