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म विवेचन-यहाँ 'मधु' व 'विष' शब्द प्रतीकात्मक है। मधु से, शहद, मिश्री, मकरंद, अमृत, सद्भाव
आदि और 'विष' से उग्रता, कटुता, कलुषता, पापमय विचार आदि समझना चाहिए। Fi Elaboration-Here the terms madhu and vish have been used as
metaphors. Madhu means honey, crystal sugar, pollen, ambrosia, benevolence and other such sweet and pious things and virtues. Similarly vish means poison, aggression, bitterness, perversion, sinful thoughts and other such bitter things and vices. उपसर्ग-पद UPASARG-PAD (SEGMENT OF AFFLICTION)
५१७. चउब्विहा उवसग्गा पण्णत्ता, तं जहा-दिव्वा, माणुसा, तिरिक्खजोणिया, आयसंचेयणिज्जा।
५१७. उपसर्ग चार प्रकार के कहे हैं-(१) दिव्य-उपसर्ग-देवों द्वारा किया जाने वाला। । (२) मानुष-उपसर्ग-मनुष्यों के द्वारा किया जाने वाला। (३) तिर्यग्योनिक उपसर्ग-तिर्यंचयोनिक जीवों के द्वारा किया जाने वाला। (४) आत्मसंचेतनीय उपसर्ग-स्वयं अपने द्वारा किया गया उपसर्ग।
597. Upasarg (affliction) is of four kinds-(1) divya-upasarg- 4i affliction caused by gods, (2) manush-upasarg-affliction caused by
humans, (3) tiryagyonik-upasarg-affliction caused by animals and i (4) atmasanchetaniya-upasarg-affliction caused by self.
विवेचन-संयम से डिगाने वाली और चित्त को चलायमान करने वाली बाधा को 'उपसर्ग' कहते हैं। वे दो प्रकार के होते हैं, अनुकूल उपसर्ग-जो मन, इन्द्रिय व शरीर को प्रिय लगते हों। प्रतिकूल उपसर्गजो इनको अप्रिय लगते हों। ऐसी बाधाएँ देव, मनुष्य और तिर्यंचकृत तो होती हैं, कभी-कभी आकस्मिक भी होती हैं, उनको यहाँ आत्म-संचेतनीय कहा है।
Elaboration-A hurdle or impediment that weakens resolve and forces one to abandon ascetic-discipline is called upasarg or affliction. They are of two types—anukool upasarg (favourable to and liked by senses and mind) and pratikool upasarg (unfavourable to and disliked by senses and mind). Such afflictions are generally caused by gods, human beings, and animals. The accidental afflictions without any apparent cause included here in atmasanchetaniya or self inflicted afflictions.
५९८. दिव्वा उवसग्गा चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा-हासा, पाओसा, वीमंसा, पुढोवेमाता।।
५९८. दिव्य उपसर्ग चार प्रकार के कहे हैं-(१) हास्य-जनित-कुतूहल-वश हँसी-मजाक से किया है गया। (२) प्रद्वेष-जनित-पूर्व भव के वैर से प्रेरित होकर किया गया। (३) विमर्श-जनित-परीक्षा लेने के लिए किया गया। (४) पृथग्-विमात्र-हास्य, द्वेषादि मिले-जुले अनेक कारणों से किया गया।
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| चतुर्थ स्थान : चतुर्थ उद्देशक
(59)
Fourth Sthaan : Fourth Lesson 955555555555555555555555555555555558
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