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५८१. मैथुनसंज्ञा चार कारणों से उत्पन्न होती है-(१) शरीर में माँस, रक्त, वीर्य का अधिक संचय , होने से, (२) वेद मोहनीय कर्म के उदय से, (३) मैथुन की बातें सुनने व विकारोत्पादक दृश्य देखने से, (४) बार-बार मैथुन सम्बन्धी चिन्तन स्मरण से। ___581. There are four reasons for maithun-sanjna (desire for sex)(1) excess accumulation of flesh, blood, and semen in the body, (2) fruition of veda mohaniya karma (karma responsible for sexual feelings), (3) hearing about sex and seeing erotic scenes and (4) continued thinking about sex.
५८२. चउहिं ठाणेहिं परिग्गहसण्णा समुप्पज्जति, तं जहा-अविमुत्तयाए, लोभवेयणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं, मतीए तदट्ठोवओगेणं।
५८२. परिग्रहसंज्ञा चार कारणों से उत्पन्न होती है-(१) परिग्रह या इच्छा-तृष्णा का त्याग न होने से, (२) लोभ मोहनीय कर्म के उदय से, (३) परिग्रह को देखने तथा धन का महत्त्व बताने वाली बातों के से, (४) बार-बार परिग्रह सम्बन्धी चिन्तन करते रहने से। ____582. There are four reasons for parigraha-sanjna (desire for i possessions)—(1) not renouncing the desire and craving for possessions,
(2) fruition of lobha mohaniya karma (karma responsible for fe greed), (3) hearing about importance of wealth and possessions and seeing things worth possessing and (4) continued thinking about 4 possessing things.
विवेचन-उक्त सूत्रों में 'संज्ञा' शब्द एक विशेष अर्थ है-“तत्सम्बन्धी विशेष प्रकार के कर्मोदय से जागृत होने वाली विकृत चेतना या भावना।" आहार संज्ञा में असाता वेदनीय, भय संज्ञा में भय वेदनीय, मैथुन संज्ञा में वेद मोहनीय और परिग्रह संज्ञा में लोभ मोहनीय कर्मों का उदय अन्तरंग कारण है। शेष तीन-तीन बहिरंग कारण हैं।
Elaboration—The term sanjna has been used in a special sensepervert feelings of desire rising due to fruition of related karmas. Aharsanjna, bhaya-sanjna, maithun-sanjna and parigraha-sanjna rise due to fruition of asata vedaniya, bhaya vedaniya, veda mohaniya and lobha mohaniya karma respectively. This is the intrinsic cause. The remaining three causes are extrinsic. काम-पद KAAM-PAD (SEGMENT OF CARNALITY)
५८३. चउबिहा कामा पण्णत्ता, तं जहा-सिंगारा, कलुणा, बीभच्छा, रोद्दा। सिंगारा कामा देवाणं, कलुणा कामा मणुयाणं, बीभच्छा कामा तिरिक्खजोणियाणं, रोद्दा कामा णेरइयाणं।
चतुर्थ स्थान : चतुर्थ उद्देशक
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Fourth Sthaan : Fourth Lesson
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