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५७६. चउव्हिा किसी पण्णत्ता, तं जहा - वाविया, परिवाविया, णिंदिता, परिणिंदिता । वामेव चउव्हिा पव्वज्जा पण्णत्ता, तं जहा - वाविता, परिवाविता, णिंदिता, परिणिंदिता ।
५७६. कृषि (खेती) चार प्रकार की कही है - ( १ ) वापिता - गेहूँ आदि की तरह एक बार बीजाई करने वाली, (२) परिवापिता- एक बार स्थान से उखाड़कर अन्य स्थान पर रोपण की जाने वाली, (३) निदाता - बोये गये धान्य के साथ उगी हुई विजातीय घास को बीन कर तैयार होने वाली और (४) परिनिदाता - दो-तीन बार गुड़ाई करके की जाने वाली कृषि |
इसी प्रकार प्रव्रज्या भी चार प्रकार की कही है - ( १ ) वापिता प्रव्रज्या - सामायिक चारित्र में आरोपित करना (छोटी दीक्षा ), ( २ ) परिवापिता प्रव्रज्या - महाव्रतों में आरोपित करना (बड़ी दीक्षा), (३) निदाता प्रव्रज्या - अतिचारों की एक बार आलोचना कर से शुद्ध होने वाली, और (४) परिनिदाता प्रव्रज्या - जिसमें बार-बार अतिचारों की आलोचना करनी पड़ती हो, वह दीक्षा ।
576. Krishi (farming) is of four kinds-(1) Vapita-done with one sowing, like wheat crop. (2) Parivapita done with transplantation. 5 (3) Nidata-done with removal of weeds from the sown crop once. (4) Parinidata-done with hoeing two three times.
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• ५७७. प्रव्रज्या चार प्रकार की कही है - ( १ ) पुंजित धान्यसमाना - खलिहान में रखे साफ किये गये धान्य-पुंज समान दोष व अतिचारों से रहित, (२) विरेल्लितधान्यसमाना - साफ किये गये, किन्तु खलिहान में बिखरे हुए भूसे से मिश्रित धान्य के समान अल्प- अतिचारों वाली, (३) विक्षिप्तधान्यसमानाखलिहान में बैलों आदि के द्वारा कुचले गए कंकर - भूसे से मिश्रित धान्य के समान अतिचारों की बहुलता वाली, और (४) संकट्टितधान्यसमाना - खेत से काटकर खलिहान में लाये गये कूड़े-कंकर आदि से मिश्रित धान्य- पूलों के समान अत्यधिक अतिचारों से युक्त प्रव्रज्या ।
चतुर्थ स्थान : चतुर्थ उद्देशक
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In the same way pravrajya ( ascetic initiation) is of four kinds - फ्र (1) Vapita pravrajya — to initiate in Samayik Charitra (chhoti diksha or फ्र the primary initiation). (2) Parivapita pravrajya-to initiate into great फ्र vows (badi diksha or final initiation). (3) Nidata pravrajya-involving just one reproachment for transgressions. (4) Parinidata pravrajyainvolving repeated reproachment for transgressions.
५७७. चउव्विहा पव्वज्जा पण्णत्ता, तं जहा - धण्णपुंजितसमाणा, धण्णविरल्लितसमाणा, विक्खित्तसमाणा, धण्णसंकट्टितसमाणा ।
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577. Pravrajya (ascetic initiation) is of four kinds— फ्र (1) Punjitadhanyasamana-free of faults and transgression like cleaned grain heaps in a granary. (2) Virellitadhanyasamana-with some faults and transgressions like cleaned but chaff mixed scattered grain in a granary. (3) Vikshiptadhanyasamana-with
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more faults and
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Fourth Sthaan: Fourth Lesson
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