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5 प्रव्रज्या- पद PRAVRAJYA-PAD (SEGMENT OF ASCETIC INITIATION)
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५७१. चउव्विहा पव्वज्जा
hi दुहओलोगपडिबद्धा, अप्पडिबद्धा ।
पण्णत्ता, तं जहा - इहलोगपडिबद्धा, परलोगपडिबद्धा,
५७१. प्रव्रज्या (निर्ग्रन्थ दीक्षा) चार प्रकार की कही है - ( १ ) इहलोकप्रतिबद्धा - इस लोक-सम्बन्धी फ सुख-कामना से युक्त, (२) परलोकप्रतिबद्धा - परलोक-सम्बन्धी सुख-कामना युक्त, (३) लोकद्वयप्रतिबद्धा - 5 दोनों लोकों की सुख-कामना से युक्त, और (४) अप्रतिबद्धा - किसी भी प्रकार के सांसारिक सुख की कामना से रहित ।
571.
५७२. चउव्विहा पव्वज्जा पण्णत्ता, तं जहा - पुरओपडिबद्धा मग्ग ओपडिबद्धा, दुहओपडिबद्धा, अप्पडिबद्धा ।
Pravrajya
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(ascetic initiation) is of four kinds— (1) Ihalokapratibaddha-with a wish for happiness during this birth. (2) Paralokapratibaddha-with a wish for happiness during the next f birth. (3) Lokadvyapratibaddha — with a wish for happiness during the 5 said two births. (4) Apratibaddha — with no wish at all for any kind of 5 mundane happiness.
५७२. प्रव्रज्या चार प्रकार की कही है - ( १ ) पुरतः प्रतिबद्धा - आहार अथवा शिष्यपरिवारादि की कामना (भावी आकांक्षा) से ली जाने वाली, (२) मार्गतः (पृष्ठतः) प्रतिबद्धा - वंश, कुल और कुटुम्बादि की प्रतिष्ठा बढ़ाने की कामना से ली जाने वाली, (३) द्वयप्रतिबद्धा - उक्त दोनों प्रकार की कामना से ली जाने वाली, और (४) अप्रतिबद्धा - उक्त दोनों प्रकार की कामनाओं से रहित ।
५७३. चउव्विहा पव्वज्जा पण्णत्ता, तं जहा - ओवायपव्वज्जा, अक्खातपव्वज्जा, संगारपव्वज्जा, विहगगइपव्वज्जा ।
572. Pravrajya (ascetic initiation) is of four kinds-(1) Puratahpratibaddha-with a wish for getting food, disciples, and other things. i (2) Margatah (Prishtatah) pratibaddha — with a wish for enhancing honour of clan, lineage, family etc. (3) Dvayapratibaddha-with a wish for the two aforesaid things. (4) Apratibaddha — with no wish at all for 5 the said two things.
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५७३. प्रव्रज्या चार प्रकार की कही है - ( १ ) अवपात प्रव्रज्या - गुरु आदि की सेवा के निमित्त ली जाने वाली दीक्षा, (२) आख्यात प्रव्रज्या - दूसरों के कहने से या उनसे प्रेरणा पाकर ली जाने वाली दीक्षा, (३) संगर प्रव्रज्या - तुम दीक्षा लोगे तो मैं भी दीक्षा लूँगा, इस प्रकार परस्पर प्रतिज्ञाबद्ध होने से या किसी संकेत से ली जाने वाली, और (४) विहगगति प्रव्रज्या - एकाकी होकर देशान्तर में जाकर ली जाने वाली दीक्षा ।
चतुर्थ स्थान : चतुर्थ उद्देशक
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Fourth Sthaan: Fourth Lesson
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