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5555555555555555555555555555555550 ॐ सम्मोही भावना SAMMOHI BHAAVANA
५६९. चउहिं ठाणेहिं जीवा सम्मोहत्ताए कम्मं पगरेंति, तं जहा-उम्मग्गदेसणाए, + मग्गंतराएणं, कामासंसप्पओगेणं, भिज्जाणियाणकरणेणं।
५६९. चार स्थानों से जीव सम्मोहत्व कर्म का उपार्जन करते हैं-(१) उन्मार्गदेशना से-जिन-वचनों फ़ से विरुद्ध मिथ्या मार्ग का उपदेश देने से, (२) मार्गान्तराय से मुक्ति के मार्ग में प्रवृत्त व्यक्ति को विघ्न,
बाधा उपस्थित करने से, (३) कामाशंसाप्रयोग से-तपस्या करते हुए काम-भोगों की अभिलाषा रखने ऊ से, और (४) भिध्यानिदानकरण से-भोगों की तीव्र लालसा-वश बार-बार निदान करने से।
569. Four sthaans (activities) make beings acquire karmas leading to birth as Sammohi gods--(1) Unmarg deshana-to preach against the sermon of Jina or the right path. (2) Margantaraya-by obstructing or creating hurdles in the path of a person heading towards liberation. (3) Kamashamsa prayog—by having desire for carnal pleasures while indulging in austerities. (4) Mithyanidaanakaran-to hope and wish time and again for satiation of intense carnal cravings देवकिल्विषी भावना DEVAKILVISHI BHAAVANA
५७०. चउहि ठाणेहिं जीवा देवकिब्बिसियत्ताए कम्मं पगरेंति, तं जहा-अरहंताणं अवणं वदमाणे, अरहंतपण्णत्तस्स धम्मस्स अवणं वदमाणे, आयरियउवज्झायाणमवण्णं वदमाणे, चाउवण्णस्स संघस्स अवण्णं वदमाणे।
५७०. चार स्थानों से जीव देवकिल्विषिकत्व कर्म का उपार्जन करते हैं-(१) अर्हन्तों का अवर्णवाद करने से, (२) अर्हत्प्रज्ञप्त धर्म का, (३) आचार्य और उपाध्याय का, और (४) चतुर्विध संघ ॐ का अवर्णवाद करने से।
570. Four sthaans (activities) make beings acquire karmas leading to birth as Devakilvishi gods-by slandering and criticizing (1) Arhants, (2) religion propagated by Arhats, (3) acharya and upadhyaya, and (4) Chaturvidh Sangh (four limbed religious organization).
विवेचन-इन अशुभ भावनाओं का उत्तराध्ययन अध्ययन ३६ में तथा बृहत्कल्पभाष्य भाग २ में 卐 विस्तार पूर्वक वर्णन है।
हिन्दी में देखें भावना योग (आचार्य श्री आनन्द ऋषिजी) खण्ड-२
Elaboration-Detailed discussion on the sentiments at the back of the aforesaid activities is available in chapter 36 of Uttaradhyayan and part 2 of Brihatkalpabhashya. Also refer to the Hindi book Bhaavana Yoga, part-2 by Acharya Shri Anand Rishi ji.
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卐 | स्थानांगसूत्र (२)
(42)
Sthaananga Sutra (2)
乐乐团
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