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卐 552. Kshudra prani (lower animals) (or beings that cannot attain
liberation in the next birth) are of four kinds-(1) dvindriya jiva (two sensed beings), (2) trindriya jiva (three sensed beings), (3) chaturindriya jiva (four sensed beings) and (4) sammurchhim panchendriya tiryagyonik jiva (five-sensed animals of asexual origin). भिक्षुक-पद BHIKSHUK-PAD (SEGMENT OF ALMS-SEEKER)
५५३. चत्तारि पक्खी पण्णत्ता, तं जहा-णिवतित्ता णाममेगे णो परिवइत्ता, परिवइत्ता ॐ णाममेगे णो णिवतित्ता, एगे णिवतित्तावि परिवइत्तावि, एगे णो णिवतित्ता णो परिवइत्ता।।
एवामेव चत्तारि भिक्खागा पण्णत्ता, तं जहा-णिवतित्ता णाममेगे णो परिवइत्ता, परिवइत्ता मणाममेगे णो णिवतित्ता, एगे णिवतित्तावि परिवइत्तावि, एगे णो णिवतित्ता णो परिवइत्ता।
५५३. पक्षी चार प्रकार के होते हैं-(१) निपतिता, न परिव्रजिता-कोई पक्षी अपने घोंसले से नीचे उतर सकता है, किन्तु (अक्षम होने से) इधर-उधर उड़ नहीं सकता; (२) परिव्रजिता, न निपतिता-कोई के पक्षी अपने घोंसले से उड़ सकता है, किन्तु (भीरु होने से) नीचे नहीं उतर सकता; (३) निपतिता, 卐 परिव्रजिता-कोई समर्थ पक्षी अपने घोंसले से नीचे भी उतर सकता है और ऊपर भी उड़ सकता है; तथा
(४) न निपतिता, न परिव्रजिता-कोई पक्षी (अतीव बाल्यावस्था होने के कारण) अपने घोंसले से न नीचे ॐ ही उतर सकता है और न ऊपर ही उड़ सकता है।
इसी प्रकार भिक्षुक भी चार प्रकार के होते हैं-(१) कोई भिक्षु भिक्षा के लिए निकलता है, किन्तु ॐ रुग्णता आदि कारणों से अधिक घूम नहीं सकता; (२) कोई भिक्षु भिक्षा के लिए घूम सकता है, किन्तु ॥ + स्वाध्याय ध्यानादि में संलग्न रहने के कारण भिक्षा के लिए निकल नहीं सकता; (३) कोई समर्थ भिक्षु
भिक्षा के लिए निकलता भी है और घूमता भी है; (४) कोई भिक्षु नवदीक्षित या अल्पवयस्क होने के 卐 कारण भिक्षा के लिए न निकलता है और न घूमता ही है।
553. Pakshi (birds) are of four kinds-(1) Nipatita, na parivrajitasome bird can come out of its nest but cannot fly around (due to weakness). (2) Parivrajita, na nipatita-some bird can fly but does not come out of its nest (out of fear). (3) Nipatita, parivrajita--some bird can come out of its nest and fly around as well. (4) Na nipatita, na parivrajita-some bird can neither come out of its nest nor fly around (due to immature age).
In the same way bhikshu (alms seekers or ascetics) are of four 45 kinds (1) Nipatita, na parivrajita-some ascetic can go out for alms卐 seeking but cannot move around much due to sickness. (2) Parivrajita,
na nipatita-some ascetic can move around to seek alms but being busy in studies and meditation does not go out. (3) Nipatita, parivrajita
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स्थानांगसूत्र (२)
(34)
Sthaananga Sutra (2) 55555555555555555555555555555555555g
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