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________________ a5 听听听听听听听听 $ $$$$$ $$ $$$ $$$ $$55555555555555555 5555555 जीव-पद JIVA-PAD (SEGMENT OF LIVING BEINGS) ॐ १५२. दसविधा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता, तं जहा-पढमसमयएगिंदिया, # अपढमसमयएगिदिया, (पढमसमयबेइंदिया, अपढमसमयबेइंदिया, पढमसमयतेइंदिया, ॐ अपढमसमयतेइंदिया, पढमसमयचरिंदिया, अपढमसमयचउरिंदिया, पढमसमयपंचिंदिया), + अपढमसमयपंचिंदिया। 卐 १५२. संसारी जीव दस प्रकार के हैं, जैसे-(१) प्रथम समय-जिनको उत्पन्न हुए प्रथम समय ही हुआ है ऐसे एकेन्द्रिय जीव। (२) अप्रथम समय-जिनको उत्पन्न हुए एक से अधिक समय हो चुका है ॐ ऐसे एकेन्द्रिय जीव। (३) प्रथम समय में उत्पन्न द्वीन्द्रिय जीव। (४) अप्रथम समय में उत्पन्न द्वीन्द्रिय फ़ जीव। (५) प्रथम समय में उत्पन्न त्रीन्द्रिय जीव। (६) अप्रथम समय में उत्पन्न त्रीन्द्रिय जीव। (७) प्रथम समय में उत्पन्न चतुरिन्द्रिय जीव। (८) अप्रथम समय में उत्पन्न चतुरिन्द्रिय जीव। (९) प्रथम समय में म उत्पन्न पंचेन्द्रिय जीव। (१०) अप्रथम समय में उत्पन्न पंचेन्द्रिय जीव। 152. Samsar-samapannak jivas (worldly living beings) are of ten kinds-(1) Pratham samaya ekendriya jivas-one-sensed beings at the 4i first moment of birth. (2) Apratham samaya ekendriya jivas-one-sensed 卐 beings at post birth moments. (3) Pratham samaya dvindriya jivas. 41 (4) Apratham samaya dvindriya jivas. (5) Pratham samaya trindriya jivas. (6) Apratham samaya trindriya jivas. (7) Pratham samaya chaturindriya : jivas. (8) Apratham samaya chaturindriya jivas. (9) Pratham samaya ॐ panchendriya jivas. (10) Apratham samaya panchendriya jivas. १५३. दसविधा सव्वजीव पण्णत्ता, तं जहा-पुढविकाइया, (आउकाइया, तेउकाइया, वाउकाइया), वणस्सइकाइया, बेंदिया, (तेइंदिया, चउरिदिया), पंचेंदिया, अणिंदिया। ____ अहवा-दसविधा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा-पढमसमयणेरइया, अपढमसमयणेरइया, (पढमसमयतिरिया, अपढमसमयतिरिया, पढमसमयमणुया, अपढमसमयमणुया, पढमसमयदेवा), अपढमसमयदेवा, पढमसमयसिद्धा, अपढमसमयसिद्धा। १५३. सर्व जीव दस प्रकार के हैं, जैसे-(१) पृथ्वीकायिक, (२) अप्कायिक, (३) तेजस्कायिक , म (४) वायुकायिक, (५) वनस्पतिकायिक, (६) द्वीन्द्रिय, (७) त्रीन्द्रिय, (८) चतुरिन्द्रिय, (९) पंचेन्द्रिय,. (१०) अनिन्द्रिय (सिद्ध) जीव। अथवा सर्व जीव दस प्रकार के हैं, जैसे-(१) प्रथम समय-उत्पन्न नारक। (२) अप्रथम : समय-उत्पन्न नारक। (३) प्रथम समय में उत्पन्न तिर्यंच। (४) अप्रथम समय में उत्पन्न तिर्यंच। (५) प्रथम समय में उत्पन्न मनुष्य। (६) अप्रथम समय में उत्पन्न मनुष्य। (७) प्रथम में समय में उत्पन्न देव। ॐ 卐 (८) अप्रथम समय में उत्पन्न देव। (९) प्रथम समय में सिद्धगति को प्राप्त सिद्ध । (१०) अप्रथम समय में 5 सिद्धगति को प्राप्त सिद्ध। aFFFFF F$ $$ $$$$ $$$$$$ $$$ $$$$$$$$$$$$ $5 $55 5 $ $$$$$$$ $55 दशम स्थान (551) . Tenth Sthaan Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002906
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2004
Total Pages648
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_sthanang
File Size20 MB
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