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卐 (7) Mahashukra kalp, (8) Sahasrar kalp, (9) Pranat kalp, and (10) Achyut kalp. 149. There are said to be ten Indras (overlords) in these Kalps - ( 1 ) Shakra, (2) Ishan, (3) Sanatkumar, (4) Maahendra, फ (5) Brahma, (6) Lantak, (7) Mahashukra, (8) Sahasrar, (9) Pranat, and 5 ( 10 ) Achyut.
१५०. एतेसि णं दसहं इंदाणं दस परिजाणिया विमाणा पण्णत्ता, तं जहा - पालए, पुष्फए, (सोमणसे, सिरिवच्छे, णंदियावत्ते, कामकमे, पीतिमणए, मणोरमे), विमलवरे, सव्वतोभद्दे ।
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१५०. इन दसों इन्द्रों के पारियानिक (यात्रा पर जाने के लिए) विमान दस हैं, जैसे- (१) पालक, (२) पुष्पक, (३) सौमनस, (४) श्रीवत्स, (५) नन्द्यावर्त, (६) कामक्रम, (७) प्रीतिमना, (८) मनोरम, 5 (९) विमलवर, (१०) सर्वतोभद्र ।
(दस कल्पों के इन्द्र आदि का विस्तृत वर्णन प्रज्ञापना पद १ तथा जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति आदि में है )
150. These ten Indras are said to have ten paariyanik vimaans (celestial vehicles used for traveling ) – (1) Paalak, (2) Pushpak, (3) Saumanas, (4) Shrivatsa, (5) Nandyavart, (6) Kamakram, 5 (7) Pritimana, (8) Manoram, (9) Vimalavar and ( 10 ) Sarvatobhadra. 5 (for more details about kalps and Indras refer to Prajnapana/1 and Jambudveep Prajnapti)
प्रतिमा- पद PRATIMA PAD (SEGMENT OF SPECIAL CODES)
१५१. दसदसमिया णं भिक्खुपडिमा एगेण रातिंदियसतेणं अद्धछट्ठेहि य भिक्खासतेहिं अहासुतं (अहाअत्थं अहातचं अहामग्गं अहाकप्पं सम्मं कारणं फासिया पालिया सोहिया तीरिया किट्टिया) आराहिया आवि भवति ।
१५१. दस - दशमिका भिक्षु प्रतिमा सौ दिन-रात तथा ५५० भिक्षा - दत्तियों द्वारा यथासूत्र, यथाअर्थ यथातथ्य, यथामार्ग, यथाकल्प तथा सम्यक् प्रकार काय से आचरित, पालित, शोधित, पूरित, कीर्त्तित और आराधित की जाती है। (विशेष वर्णन अन्तकृद्दशा सूत्र पृष्ठ पर देखें)
151. The Dash-dashamika Bhikshupratima (a specific practice with special codes) is sincerely observed (palit ), purified (shodhit; for transgressions), completed (purit); for breaking fast), concluded ( kirtit;
break the fast) and successfully performed (aradhit) for 100 ( 10x10) days 5 and nights with 550 bhikshadattis (servings of alms) according to the 5 scriptures ( yathasutra), correct interpretation ( yatha- arth), prescribed 5 procedure ( yathamarg ) and code of praxis ( yathakalp), perfectly following fundamentals ( yathatattva), with equanimity (samata) and touching the body (actually not just conceptually). (for more details refer to Antakriddashanga Sutra)
स्थानांगसूत्र ( २ )
(550)
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Sthaananga Sutra (2)
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