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________________ 2 95 95 5 5 55 55 5 55 55 5 5 5 5 5 5 5 5 55 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 59555555555955 5 52 卐 ததததத****************************மிதில் kinds—(1) shrotrendriya-bal, y ( 2 ) chakshurindriya-bal, (3) ghranendriya-bal, (4) rasanendriya-bal, ५ (5) sparshanendriya-bal, (here bal means full capacity of sense organs), 5 (6) jnana-bal, ( 7 ) darshan-bal, ( 8 ) chaaritra-bal, ( 9 ) tapo-bal and 5 (10) virya-bal (strength of knowledge, perception / faith, conduct, austerities and potency of endeavour). 88. Bal भाषा- पद BHASHA-PAD (SEGMENT OF SPEECH OR LANGUAGE) (strength) is of ten ८९. दसविहे सच्चे पण्णत्ते, तं जहा ८९. सत्य दस प्रकार का है, जैसे जव सम्म ठवणा, णामे रूवे पडुच्चसच्चे य ववहार भाव जोगे, दसमे ओवम्मसच्चे य॥ १ ॥ ( संग्रहणी गाथा ) ( १ ) जनपद - सत्य - जिस जनपद के निवासी जिस वस्तु के लिए जो शब्द बोलते हैं, उसे वहाँ पर बोलना । जैसे - कन्नड़ देश में जल के लिए 'नीरू' और तमिल में 'तण्णी' बोलना । ( २ ) सम्मत - सत्य - जिस वस्तु के लिए जो शब्द रूढ़ है, उसे ही बोलना । जैसे- जल में उत्पन्न कमल को पंकज बोलते हैं, किन्तु मेंढक को नहीं । (३) स्थापना - सत्य - निराकार वस्तु में साकार वस्तु की स्थापना कर बोलना । जैसे - शतरंज की गोटों को हाथी, ऊँट, वजीर आदि कहना । (४) नाम - सत्य - गुणरहित होने पर भी जिसका जो नाम है, उसे उसी नाम से पुकारना । जैसेनिर्धन को लक्ष्मीनाथ कहना। (५) रूप - सत्य - किसी रूप या वेष के धारण करने से उसे वैसा बोलना । जैसे- स्त्री वेषधारी पुरुष को स्त्री कहना । (६) प्रतीत्य - सत्य - अपेक्षा से बोला गया वचन प्रतीत्य- सत्य कहलाता है। जैसे- अनामिका अंगुली को कनिष्ठा की अपेक्षा बड़ी कहना और मध्यमा की अपेक्षा छोटी कहना । (७) व्यवहार - सत्य - लोक-व्यवहार में बोले जाने वाले शब्द व्यवहार-सत्य कहलाते हैं। जैसे-पर्वत जलता है। वास्तव में पर्वत नहीं जलता, किन्तु उसके ऊपर स्थित वृक्ष आदि जलते हैं । (८) भाव - सत्य - व्यक्त पर्याय के आधार से बोला जाने वाला सत्य । जैसे- काक के भीतर रक्त- माँस आदि अनेक वर्ण की वस्तुएँ होने पर भी उसे 'काला' कहना । (९) योग - सत्य - किसी वस्तु के सयोग से उसे उसी नाम से बोलना । जैसे- दण्ड के संयोग से पुरुष को दण्डी कहना । स्थानांगसूत्र (२) (१०) औपम्य - सत्य - किसी वस्तु की उपमा से उसे वैसा कहना । जैसे - चन्द्र के समान सौम्य मुख होने से चन्द्रमुखी कहना । Jain Education International (508) फफफफफफफ Sthaananga Sutra (2) For Private & Personal Use Only फ्र www.jainelibrary.org
SR No.002906
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2004
Total Pages648
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_sthanang
File Size20 MB
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