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endowed with the Sambhinnashrotolabdhi special power hears from all sense organs. Also to hear from one ear is deshatah and to hear from both the ears is sarvatah.
४. दस इंदियत्था पुडुप्पण्णा पण्णत्ता, तं जहा-देसेणवि एगे सदाइं सुणेति, सब्वेणवि एगे सदाइं सुणेति। (दसेणवि एगे रूवाई पासंति, सब्बेणवि एगे रूवाइं पासंति। देसेणवि एगे गंधाई 卐 जिंघंति, सवेणवि एगे गंधाइं जिंघंति। देसेणवि एगे रसाइं आसाति, सबेणवि एगे रसाइं !
आसानैति। देसेणवि एगे फासाइं पडिसंवेदेति, सव्वेणवि एगे फासाइं पडिसंवेदेति)।
४. इन्द्रियों के वर्तमानकालीन विषय दस हैं, जैसे-(१) कई शरीर के एक देश से भी शब्द सुनते : हैं। (२) कई जीव शरीर के सर्वदेश से भी शब्द सुनते हैं। (३) कई जीव शरीर के एक देश से भी रूप 卐 देखते हैं। (४) कई जीव शरीर के सर्वदेश से भी रूप देखते हैं। (५) कई जीव शरीर के एक देश से भी
गन्ध सूंघते हैं। (६) कई जीव शरीर के सर्व देश से भी गन्ध सूंघते हैं। (७) कई जीव शरीर के एक देश से भी रस चखते हैं। (८) कई जीव शरीर के सर्व देश से भी रस चखते हैं। (९) कई जीव शरीर के । एक देश से भी स्पर्शों का अनभव करते हैं। (१०) कई जीव शरीर के सर्व देश से भी स्पर्शों का अनुभव करते हैं।
4. There are ten indriyarth (subjects of sense organs) related to the present-(1) Some jivas (living beings) experience sounds from one part of the body (deshatah). (2) Some jivas (living beings) experience sound : from all parts of the body (sarvatah). (3) Some jivas experience forms from one part of the body. (4) Some jivas experience forms from all parts of the body. (5) Some jivas experience odours from one part of the body. !
jivas experience odours from all parts of the body. (7) Some ! jivas experience taste from one part of the body. (8) Some jivas : experience taste from all parts of the body. (9) Some jivas experience touch from one part of the body. (10) Some jivas experience touch from all parts of the body.
५. दस इंदियत्था अणागता पण्णत्ता, तं जहा-देसेणवि एगे सद्दाइं सुणिस्संति, सव्वेणवि एगे 5 सद्दाइं सुणिस्संति। दिसेणवि एगे रूवाई पासिस्संति, सवेणवि एगे रूवाइं पासिस्संति। देसेणवि एगे !
गंधाई जिंघिस्संति, सब्वेणवि एगे गंधाइं जिंघिस्संति। देसेणवि एगे रसाइं आसादेस्संति, सव्वेणवि । के एगे रसाइं आसादेस्संति। देसेणवि एगे फासाइं पडिसंवेदेस्संति), सव्वणेवि एगे फासाइं । ॐ पडिसंवेदेस्संति।
५. इन्द्रियों के भविष्यकालीन विषय दस हैं-(१) कई जीव शरीर के एक देश से भी शब्द सुनेंगे। ॐ (२) कई जीव शरीर के सर्व देश से भी शब्द सुनेंगे। (३) कई जीव शरीर के एक देश से भी रूप
देखेंगे। (४) कई जीव शरीर के सर्व देश से भी रूप देखेंगे। (५) कई जीव शरीर के एक देश से भी ।
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| स्थानांगसूत्र (२)
(468)
Sthaananga Sutra (2)
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