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________________ ) 35555555555555555555555))) ॐ आर्यों ! मैंने जैसे श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए दो प्रकार के बन्धनों का निरूपण किया है, जैसे-प्रेयस् प्रबन्धन (राग) और द्वेषबन्धन। इसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए दो प्रकार के - बन्धन कहेंगे। प्रेयसबन्धन और द्वेषबन्धन। आर्यों ! जैसे मैंने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए मनोदण्ड, वचनदण्ड और कायदण्ड तीन प्रकार के दण्डों का निरूपण किया है। इसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए मनोदण्ड, वचनदण्ड और म कायदण्ड तीन प्रकार के दण्डों का निरूपण करेंगे। आर्यों ! मैंने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए जैसे-क्रोधकषाय, मानकषाय, मायाकषाय और लोभकषाय चार कषायों का निरूपण किया है। इसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए चार प्रकार के कषायों का निरूपण करेंगे। क्रोधकषाय, मानकषाय, मायाकषाय और लोभकषाय। ___आर्यों ! मैंने श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए जैसे पाँच कामगुणों का निरूपण किया है, जैसे-शब्द, रूप, गन्ध, रस म और स्पर्श। इसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए पाँच गुणों का निरूपण करेंगे। है जैसे-शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श। आर्यों ! मैंने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए जैसे-पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक और त्रसकायिक छह जीवनिकायों का निरूपण किया है, इसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक और त्रसकायिक, छह जीवनिकायों का निरूपण करेंगे। आर्यों ! मैंने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए जैसे सात भयस्थानों का निरूपण किया है, इहलोकभय, परलोकभय, आदानभय, अकस्माद्भय, वेदनाभय, मरणभय और अश्लोकभय। इसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए सात भयस्थानों का निरूपण करेंगे, इहलोकभय, परलोकभय, आदानभय, अकस्माद्भय, वेदनाभय, मरणभय और अश्लोकभय। ___आर्यों ! मैंने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए जैसे आठ मदस्थानों का, नौ ब्रह्मचर्य गुप्तियों का, दस प्रकार के श्रमण-धर्मों का यावत् तेतीस आशातनाओं का निरूपण किया है, इसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए आठ मदस्थानों का, नौ ब्रह्मचर्यगुप्तियों का, दस प्रकार के श्रमण-धर्मों का यावत् तेतीस आशातनाओं का निरूपण करेंगे। 62 (d) O noble ones! As I have defined one kind of aarambh sthaan * (sinful activity) for Shraman nirgranths, in the same way Arhat † Mahapadma will define one kind of aarambh sthaan (sinful activity) for Fi Shraman nirgranths. O noble ones ! As I have defined two kinds of bandhan (bondage) for Shraman nirgranths, such as preyas bandhan (bondage of attachment) and dvesh bandhan (bondage of aversion); in the same way Arhat 455555555))))))))))))))))) 5 LERIF नवम स्थान (451) Ninth Sthaan 卐 15555555555)))))))))))))))))))))) )558 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002906
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2004
Total Pages648
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_sthanang
File Size20 MB
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