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卐 in the Bhaavana chapter of Acharanga Sutra). Then as a Jina, Kevali,
Sarvajna and Sarvadarshi (Victor over senses, Omniscient, all knowing and all seeing) he will know and see all modes of all things in all worlds including hell. He will lead an itinerant life preaching about five great vows in word and spirit, six forms of life and dharma (code of conduct).
६२. (घ) से जहाणामए अज्जो ! मए समणाणं णिग्गंथाणं एगे आरंभठाणे पण्णत्ते। एवामेव ॐ महापउमेवि अरहा समणाणं णिग्गंथाणं एगं आरंभठाणं पण्णवेहिति।
से जहाणामए अज्जो ! मए समणाणं णिग्गंथाणं दुविहे बंधणे पण्णत्ते, तं जहा-पेज्जबंधणे य। 卐 दोसबंधणे य। एवामेव महापउमेवि अरहा समणाणं णिग्गंथाणं दुविहं बंधणं पण्णवेहिति, तं जहा-: पेज्जबंधणे च, दोसबंधणे च।
से जहाणामए अज्जो ! मए समणाणं णिग्गंथाणं तओ दंडा पण्णत्ता, तं जहा-मणदंडे, वयदंडे, कायदंडे। एवामेव महापउमेवि अरहा समणाणं णिग्गंथाणं तओ दंडे पण्णवेहिति, तं जहा-मणोदंड,
वयदंडं, कायदंड। + से जहाणामए (अज्जो ! मए समणाणं णिग्गंथाणं चत्तारि कसाया पण्णत्ता, तं जहा-कोहकसाए,
माणकसाए, मायाकसाए, लोभकसाए। एवामेव महापउमेवि अरहा समणाणं णिग्गंथाणं चत्तारि कसाए पण्णवेहिति, तं जहा-कोहकसायं, माणकसायं, मायाकसायं, लोभकसायं।
से जहाणामए अज्जो ! मए समणाणं णिग्गंथाणं पंच कामगुणा पण्णत्ता, तं जहा-सद्दे, रूवे, है गंधे, रसे, फासे। एवामेव महापउमेवि अरहा समणाणं णिग्गंथाणं पंच कामगुणे पण्णवेहिति, तं ॐ जहा-सई, रूवं, गंधं, रसं, फासं।
से जहाणामए अज्जो ! मए समणाणं णिग्गंथाणं छज्जीवणिकाया पण्णत्ता, तं जहापुढविकाइया, आउकाइया, तेउकाइया, वाउकाइया, वणस्सइकाइया, तसकाइया। एवामेव महापउमेवि अरहा समणाणं णिग्गंथाणं छज्जीवणिकाए पण्णवेहिति, तं जहा-पुढविकाइए, आउकाइए, तेउकाइए, वाउकाइए, वणस्सइकाइए), तसकाइए।
से जहाणामए (अज्जो ! मए समणाणं णिग्गंथाणं) सत्त भयवाणा पण्णत्ता, तं जहा(इहलोगभए, परलोगभए, आदाणभए, अकम्हाभए, वेयणभए, मरणभए, असिलोगभए)। एवामेव ॐ महापउमेवि अरहा समणाणं णिगंथाणं सत्त भयट्ठाणे पण्णवेहिति, (तं जहा-इहलोगभयं, - परलोगभयं आदाणभयं अकम्हाभयं वेयणभयं मरणभयं असिलोगभयं)।
___एवं अट्ठ मयट्ठाणे, णव बंभचेरगुत्तीओ, दसविधे समणधम्मे, एवं जाव तेत्तीसमासातणाउत्ति।। ॐ ६२. (घ) आर्यो ! जैसे मैंने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए एक आरम्भ-स्थान का निरूपण किया है, . ॐ इसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए एक आरम्भ स्थान का निरूपण करेंगे।
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स्थानांगसूत्र (२)
(450)
Sthaananga Sutra (2)
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