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पापश्रुतप्रसंग- पद PAAP SHRUT-PRASANG-PAD (SEGMENT OF ELABORATION OF EVIL LITERATURE)
२७. णवविधे पावसुयपसंगे पण्णत्ते, तं जहा
२७. पापश्रुतप्रसंग (पाप के कारणभूत शास्त्र का विस्तार) नौ प्रकार का है, जैसे- ( १ ) उत्पात श्रुतप्रकृति- विप्लव और राष्ट्र - विप्लव का सूचक शास्त्र । (२) निमित्तश्रुत-भूत, वर्तमान और भविष्य के फल का प्रतिपादक शास्त्र । ( ३ ) मन्त्रश्रुत - मन्त्र - विद्या का प्रतिपादक शास्त्र । (४) आख्यायिका श्रुत-परोक्ष बातों की प्रतिपादक मातंगविद्या का शास्त्र । (५) चिकित्साश्रुत - रोग निवारक औषधियों का प्रतिपादक आयुर्वेद शास्त्र । (६) कलाश्रुत - स्त्री-पुरुषों की कलाओं का प्रतिपादक शास्त्र । ( ७ ) आवरणश्रुतभवन निर्माण की वास्तुविद्या का शास्त्र । (८) अज्ञानश्रुत-नृत्य, नाटक, संगीत आदि का शास्त्र । (९) मिथ्याप्रवचन - कुतीर्थिक मिथ्यात्वियों शास्त्र |
उप्पाते णिमित्ते मंते, आइक्खिए तिगिच्छए । कला आवरणे अण्णाणे मिच्छापवयणे ति य ॥१ ॥
27. Paap-shrut-prasang ( elaboration of evil scriptures or literature) is of nine kinds-(1) Utpat-shrut-the scriptures about natural calamities and national disturbances. (2) Nimitta-shrut-the scriptures about augury or fortune telling. (3) Mantra-shrut-the scriptures about mantras and their applications. (4) Akhyayika-shrut-the scriptures about maatang vidya or methods of indirect perception. (5) Chikitsashrut-the scriptures about medicines and cures, such as Ayurveda. (6) Kala-shrut—the scriptures about arts. (7) Avaran-shrut—the scriptures about architecture. (8) Ajnana-shrut-the scriptures about dance, drama, music and other performing arts. (9) Mithyapravachanthe scriptures of heretics and the unrighteous.
विवेचन - समवायांग सूत्र २९/१ में उनतीस प्रकार के पापश्रुत का वर्णन है। वहाँ इनका विस्तार के साथ कथन किया जायेगा । वास्तव में जिन शास्त्रों में सम्यग् ज्ञान - दर्शन आदि का वर्णन नहीं हैं, और जिनसे सम्यग् दर्शनादि की वृद्धि-विशुद्धि नहीं होती, वे सभी पापश्रुत माने गये हैं। कारण कि प्रायः वासना पूर्ति, धन प्राप्ति या दूसरों को हानि पहुँचाने के उद्देश्य से ही इन भौतिक विद्याओं का प्रयोग किया जाता है । सम्यक् दृष्टि तो इनको भी सम्यक् श्रुत रूप में परिणत कर सकता है।
Elaboration-More details about Paap-shrut are available in Samavayanga Sutra (29/1) where twenty nine types of these works have been listed. In fact the books where right knowledge and perception are not discussed, and which do not enhance virtues leading to righteousness are all said to be Paap-shrut. The reason for this is that all these mundane subjects are mostly used for gratification of desires and greed
Sthaananga Sutra (2)
5 स्थानांगसूत्र (२)
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