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4 (7) delirium, (8) disease, (9) comatose state and (10) death. (Vritti, leaves 卐 423-424 and Hindi Tika, part-2, p.612) ॐ दर्शनावरणीयकर्म-पद DARSHANAVARANIYA KARMA-PAD
(SEGMENT OF DARSHANAVARANIYA KARMA) १४. णवविधे दरिसणावरणिज्जे कम्मे पण्णत्ते, तं जहा-णिद्दा, गिद्दाणिद्दा, पयला, पयलापयला, थीणगिरी, चक्खुदसणावरणे, अचक्खुदंसणावरणे, ओहिदंसणावरणे, केवलदंसणावरणे।।
१४. दर्शनावरणीय कर्म नौ प्रकार का है-(१) निद्रा-हल्की नींद सोना, जिससे सुखपूर्वक सोया है है और जगाया जा सके। (२) निद्रानिद्रा-गहरी नींद सोना। सुख के साथ नींद आये किन्तु कठिनता से 5
जगाया जा सके। (३) प्रचला-खड़े या बैठे हुए ऊँघना। (४) प्रचला-प्रचला-चलते-चलते सोना।
(५) स्त्यानर्द्धि-दिन में सोचे काम को निद्रावस्था में कराने वाली घोर निद्रा। (६) चक्षदर्शनावरण-चक्ष के के द्वारा होने वाले सामान्य बोध का आवरण करने वाला कर्म। (७) अचक्षुदर्शनावरण-चक्षु के सिवाय शेष
इन्द्रियों और मन से होने वाले सामान्य बोध का आवरक कर्म। (८) अवधिदर्शनावरण-इन्द्रिय और मन म की सहायता के बिना मूर्त पदार्थों के सामान्य दर्शन का प्रतिबन्धक कर्म। (९) केवलदर्शनावरण-सर्व द्रव्य 卐 + और पर्यायों के साक्षात् दर्शन का आवरक कर्म।
14. Darshanavaraniya karma (perception obscuring karma) is of nine kinds-(1) Nidra-light sleep or to sleep and awake easily. (2) Nidranidra-deep sleep or to sleep easily but awake with difficulty.
(3) Prachala-to drowse while standing or sitting. (4) Prachala5 prachala--to sleep while walking. (5) Styanardhi--the deep sleep when
thoughts of the day are acted upon in sleep (sleep-walking). (6) Chakshudarshanavaran-the karma that obscures the normal visual perception. (7) Achakshudarshanavaran-the karma that obscures the normal perception through mind and sense organs other than eye. (8) Avadhidarshanavaran-the karma that obscures the extrasensory perception of tangible things. (9) Kevaldarshanavaran-the karma that obscures the direct perception of all things and all modes. welfare-14 JYOTISH-PAD (SEGMENT OF ASTROLOGY)
१५. अभिई णं णक्खत्ते सातिरेगे णवमुहत्ते चंदेणं सद्धिं जोगं जोएति। १६. अभिइआइया णं + णव णक्खत्ता णं चंदस्स उत्तरेणं जोगं जोएंति, तं जहा-अभिई, सवणो धणिट्ठा, (सयभिसया,, पुबाभद्दवया, उत्तरापोट्टवया, रेवई, अस्सिणी), भरणी।
१५. अभिजित् नक्षत्र कुछ अधिक नौ मुहूर्त तक चन्द्रमा के साथ योग करता है। १६. अभिजित् आदि नौ नक्षत्र चन्द्रमा के साथ उत्तर दिशा से योग करते हैं, जैसे-(१) अभिजित्, (२) श्रवण, (३) धनिष्ठा, म (४) शतभिषक्, (५) पूर्वभाद्रपद, (६) उत्तरभाद्रपद, (७) रेवती, (८) अश्विनी, (९) भरणी।
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नवम स्थान
(419)
Ninth Sthaan
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