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521. There are four kinds of vran (wounds)-(1) some vran (wound) has infection (shalya) inside but it is not visible on the surface, (2) some wound has infection on the surface and not inside, (3) some wound has infection inside as well as on the surface and (4) some wound has infection neither inside nor the surface.
Men are also of four kinds—(1) some man is crooked (shalya) inside but not in appearance, (2) some man is deceitful in appearance and not inside, (3) some man is deceitful inside as well as in appearance and (4) some man is deceitful neither inside nor in appearance.
५२२. चत्तारि वणा पण्णत्ता, तं जहा-अंतोदुढे णाममेगे णो बाहिंदुढे, बाहिंदुढे णाममेगे णो ॐ अंतोदुढे, एगे अंतोदुडेवि बाहिंदुद्वेवि, एगे णो अंतोदुढे णो बाहिंदुहे।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-अंतोदुढे णाममेगे णो बाहिंदुद्वे, बाहिंदुढे णाममेगे + णो अंतोदुढे, एगे अंतोदुडेवि बाहिंदुडेवि, एगे णो अंतोदुढे णो बाहिंदुढे।
५२२. व्रण चार प्रकार के होते हैं-(१) अन्तर्दुष्ट, न बहिर्दुष्ट-कोई व्रण भीतर से दुष्ट (विकृत सड़ा-गला) होता है, किन्तु बाहर से दुष्ट नहीं होता; (२) कोई व्रण बाहर से दुष्ट होता है, किन्तु भीतर
से दुष्ट नहीं होता; (३) कोई व्रण भीतर से भी दुष्ट होता है और बाहर से भी; तथा (४) कोई व्रण न ॐ भीतर से दुष्ट होता है और न बाहर से। है इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के होते हैं-(१) कोई अन्दर से (मन से) दुष्ट होता है, किन्तु बाहर
से दुष्ट नहीं होता (दीखने में सौम्य दिखता है); (२) कोई बाहर (आकृति, वाणी व व्यवहार) से दुष्ट 卐 होता है, किन्तु भीतर से नहीं होता; (३) कोई अन्दर से भी दुष्ट होता है और बाहर से भी, तथा (४) कोई न अन्दर से दुष्ट होता है और न बाहर से।
522. There are four kinds of uran (wounds)-(1) some vran (wound) has 卐 virulent (dusht) infection (shalya) inside but not on the surface, (2) some
wound has virulent infection on the surface and not inside, (3) some wound has virulent infection inside as well as on the surface and (4) some wound has no virulent infection either inside or on the surface.
Men are also four kinds—(1) some man is evil (dusht) inside but not in appearance (appears good), (2) some man is evil in appearance (speech and disposition) and not inside, (3) some man is evil inside as well as in
appearance and (4) some man is evil neither inside nor in appearance. क विवेचन-व्रण अर्थात् घाव। व्रण दो प्रकार के होते हैं-(१) बाह्य व्रण-शरीर के किसी अंग में चाकू, + सुई, काँटा, काँच आदि नुकीले पदार्थ चुभने से घाव हो जाते हैं, ऐसे घाव बाह्य व्रण कहे जाते हैं।
(२) फोड़ा, फुसी आदि के रूप में फूटकर जो भीतर में घाव का रूप धारण कर लेते हैं, वे अन्तव्रण म (अन्तःशल्य) कहे जाते हैं।
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चतुर्थ स्थान : चतुर्थ उद्देशक
(11)
Fourth Sthaan : Fourth Lesson
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