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ॐ (३) कोई व्रण करता है और उसका संरक्षण भी करता है; तथा (४) कोई न व्रण करता है और न म उसका संरक्षण करता है।
519. There are four kinds of men who do surgery (vran)-(1) some doctor 卐 incises but does not protect the wound by bandaging (uran-samrakshan), 卐 (2) some doctor protects the wound by bandaging but does not incise,
(3) some doctor incises as well as protects the wound by bandaging and
(4) some doctor neither incises nor protects the wound by bandaging. म ५२०. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–वणकरे णाममेगे णो वणसरोही, वणसरोही ॐणाममेगे णो वणकरे, एगे वणकरेवि वणसरोहीवि, एगे णो वणकरे णो वणसरोही।
__ ५२०. व्रणकर करने वाले पुरुष चार प्रकार के होते हैं-(१) व्रण कर, न व्रणरोही-कोई व्रण म करता है, किन्तु व्रणसंरोही नहीं होता अर्थात् घाव भरने के लिए औषधि नहीं देता; (२) कोई व्रणरोही होता है (घाव भरने की दवा देता है), किन्तु व्रण नहीं करता; (३) कोई व्रण भी करता है और व्रणरोही भी होता है; तथा (४) कोई न व्रणकर होता है और न व्रणसरोही ही होता है।
520. There are four kinds of men who do surgery (vran)–(1) some doctor incises but does not administer healing medicine (vran-samrohi), (2) some doctor administers healing medicine but does not incise, (3) some doctor incises as well as administers healing medicine and (4) some doctor neither incises nor administers healing medicine. अन्त-बहिण-पद ANTARBAHIRVRAN-PAD
(SEGMENT OF INNER AND OUTER INFECTION) ५२१. चत्तारि वणा पण्णत्ता, तं जहा-अंतोसल्ले णाममेगे णो बाहिंसल्ले, बाहिंसल्ले णाममेगे + णो अंतोसल्ले, एगे अंतोसल्लेवि बाहिंसल्लेवि, एगे णो अंतोसल्ले णो बाहिंसल्ले। म एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-अंतोसल्ले णाममेगे णो बाहिंसल्ले, बाहिंसल्ले णाममेगे णो अंतोसल्ले, एगे अंतोसल्लेवि बाहिंसल्लेवि, एगे णो अंतोसल्ले णो बाहिंसल्ले।
५२१. व्रण चार प्रकार के होते हैं-(१) अन्तःशल्य, न बहिःशल्य-कुछ घावों में भीतर शल्य होता है, पर बाहर दिखाई नहीं देता; (२) कुछ घावों के बाहरी सतह पर ही शल्य होता है, भीतर नहीं; ॐ (३) कुछ घावों का शल्य बाहर दिखाई देता है और भीतर भी गहरा होता है; तथा (४) कुछ घावों में
शल्य न बाहर होता है और न भीतर। + पुरुष भी चार प्रकार के होते हैं-(१) कोई भीतरी शल्य वाला (गूढ़ कपट वाला) होता है, किन्तु + बाहरी शल्य वाला नहीं; (२) कोई बाहरी शल्य वाला होता है, भीतरी शल्य वाला नहीं; (३) कोई
भीतरी शल्य वाला भी होता है और बाहरी शल्य वाला भी तथा (४) कोई न भीतरी शल्य वाला होता है 卐 और न बाहरी शल्य वाला।
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स्थानांगसूत्र (२)
(10)
Sthaananga Sutra (2)
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