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४१. श्रमण भगवान् महावीर ने आठ राजाओं को मुण्डित कर अगार से अनगारिता में प्रव्रजित + किया। (१) वीराङ्गक, (२) वीर्ययश, (३) संजय, (४) एणेयक, (५) सेय, (६) शिव, (७) उद्दायन,
(८) शंखकाशीवर्धन। $ 41. Shraman Bhagavan Mahavir initiated eight kings from
householders to homeless ascetics after getting their heads tonsured5 (1) Virangak, (2) Viryayash, (3) Sanjaya, (4) Eneyak, (5) Seya, (6) Shiva, 'fi (7) Uddayan and (8) Shankhakashivardhan. ऊ आहार-पद AHAR-PAD (SEGMENT OF FOOD)
४२. अट्ठविहे आहारे पण्णत्ते, तं जहा-मणुण्णे असणे, पाणे, खाइमे, साइमे। अमणुण्णे 卐 (असणे, पाणे, खाइमे), साइमे।
४२. आहार आठ प्रकार का है। जैसे-(१) मनोज्ञ अशन, (२) मनोज्ञ पान, (३) मनोज्ञ खाद्य, 9 (४) मनोज्ञ स्वाद्य, (५) अमनोज्ञ अशन, (६), अमनोज्ञ पान, (७) अमनोज्ञ स्वाद्य, (८) अमनोज्ञ खाद्य।
____42. Ahar (food) is of eight kinds-(1) Manojna (palatable) Ashan, (2) Manojna Paan, (3) Manojna Khadya, (4) Manojna Svadya, (5) Amanojna (unpalatable) Ashan, (6) Amanojna Paan, (7) Amanojna Khadya and (8) Amanojna Svadya. (for details refer to Sthaan 4, aphorism 512) कृष्णराजि-पद KRISHNARAJI-PAD (SEGMENT OF ROWS OF DARKNESS)
४३. उप्पिं सणंकुमार-माहिंदाणं कप्पाणं हेटुिं बंभलोगे कप्पे रिट्टविमाणं-पत्थडे, एत्थ णं ॥ अक्खाडग-समचउरंस-संठाण-संठिताओ अट्ठ कण्हराईओ पण्णताओ, तं जहा-पुरथिमे णं दो है कण्हराईओ, दाहिणे णं दो कण्हराईओ, पच्चत्थिमे णं दो कण्हराईओ, उत्तरे णं दो कण्हराईओ। म पुरथिमा अब्भंतरा कण्हराई दाहिणं बाहिरं कण्हराई पुट्ठा। दाहिणा अभंतरा कण्हराई है पच्चत्थिमं बाहिरं कण्हराइं पुट्ठा। पच्चत्थिमा अब्भंतरा कण्हराई उत्तरं बाहिरं कण्हराई पुट्ठा। उत्तरा
अभंतरा कण्हराई पुरत्थिमं बाहिरं कण्हराइं पुट्ठा। पुरथिमपच्चथिमिल्लाओ बाहिराओ। दो
कण्हराईओ छलंसाओ। उत्तरदाहिणाओ बाहिराओ दो कण्हराईओ तंसाओ। सव्वाओ वि णं म अभंतरकण्हराईओ चउरंसाओ।
४३. सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प के ऊपर और ब्रह्मलोक कल्प के नीचे रिष्ट विमान का प्रस्तट है, वहाँ अखाड़े के समान समचतुरस्र (चतुष्कोण) संस्थान वाली आठ कृष्णराजियाँ (काले पुद्गलों ॐ की पंक्तियाँ हैं, जैसे-(१) पूर्व दिशा में दो कृष्णराजियाँ, (२) दक्षिण दिशा में दो कृष्णराजियाँ, + (३) पश्चिमी दिशा में दो कृष्णराजियाँ, (४) उत्तर दिशा में दो कृष्णराजियाँ। के पूर्व की आभ्यन्तर कृष्णराजि दक्षिण की बाह्य कृष्णराजि से स्पृष्ट है।
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स्थानांगसूत्र (२)
(380)
Sthaananga Sutra (2)
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