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45岁岁男 %%%% % % %%% %%% %%%% %%% %%%%% %%% आलोचना-पद ALOCHANA-PAD (SEGMENT OF ATONEMENT)
१८. अद्वहिं ठाणेहिं संपण्णे अणगारे अरिहति आलोयणं पडिच्छित्तए, तं जहा-आयारवं, ॐ आधारवं, ववहारवं ओवीलए. पकुव्बए, अपरिस्साई णिज्जावए, अवायदंसी।
१८. आठ स्थानों (गुणों) से सम्पन्न अनगार आलोचना (दूसरों को आलोचना-प्रायश्चित्त) देने के । म योग्य होता है-(१) आचारवान्-जो ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और वीर्य इन पाँच आचारों से सम्पन्न हो। - (२) आधारवान-जो आलोचना लेने वाले के द्वारा आलोचना किये जाने वाले समस्त अतिचारों को 卐 जानने वाला हो। (३) व्यवहारवान्-आगम, श्रुत, आज्ञा, धारणा और जीत इन पाँच व्यवहारों का ज्ञाता है म हो। (४) अपव्रीडक-आलोचना करने वाला व्यक्ति. लाज या संकोच से मक्त होकर यथार्थ आलोचना क ॐ सके, ऐसा साहस उत्पन्न करने वाला हो। (५) प्रकारी-आलोचना करने पर विशुद्धि कराने वाला हो। म (६) अपरिश्रावी-आलोचना करने वाले के आलोचित दोषों को दूसरों के सामने प्रकट करने वाला न हो।
(७) निर्यापक-बड़े प्रायश्चित्त को भी निभा सके, ऐसा सहयोग देने वाला हो। (८) अपायदर्शी+ प्रायश्चित्त-भंग से तथा यथार्थ आलोचना न करने से होने वाले दोषों को दिखाने वाला हो।
___18. An anagar (ascetic) endowed with eight sthaans (qualities) is qualified to prescribe alochana (criticism and atonement) to others, (1) Aacharvan-who is endowed with five limbs of right conduct, namely knowledge, perception/faith, conduct, austerities and potency of perseverance. (2) Aadhaarvan-who knows about all the transgressions requiring atonement by the one prepared for atonement. (3) Vyavaharvan-who has knowledge of the five kinds of vyavahar
(behaviour or conduct), namely Agam, Shrut, Ajna, Dharana and jeet. 4i (4) Apavridak-who is capable of imparting courage to rise above shyness
and hesitation in order to perform atonement properly. (5) Prakari-who can formalize purification after atonement is concluded. (6) Aprishraavi
who does not reveal the faults of the defaulter to others. (7) Niryaapakॐ who can cooperate even during extended atonement. (8) Apaayadarshi
who can indicate the consequences of breach in and improper performance of prescribed atonement.
१९. अट्ठहिं ठाणेहिं संपण्णे अणगारे अरिहति अत्तदोसमालोइत्तए, तं जहा-जातिसंपण्णे, ॐ कुलसंपण्णे, विणयसंपण्णे, णाणसंपण्णे, सणसंपण्णे, चरित्तसंपण्णे, खते, दंते।
१९. आठ स्थानों (गुणों) से सम्पन्न अनगार अपने दोषों की (स्वयं) आलोचना करने के लिए ॐ समर्थ होता है-(१) जातिसम्पन्न, (२) कुलसम्पन्न, (३) विनयसम्पन्न, (४) ज्ञानसम्पन्न, (५) दर्शनसम्पन्न,
(६) चारित्रसम्पन्न, (७) क्षान्त (क्षमाशील), (८) दान्त (इन्द्रिय-जयी)।
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स्थानांगसूत्र (२)
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(368)
Sthaananga Sutra (2)
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