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(Lambda Orionis; the 5th), (6) Ardra (Alpha Orionis; the 6th), and Si (7) Punarvasu (Beta Geminorum; the 7th).
१४८. पुस्सादिया णं सत्त णक्खत्ता अवरदारिया पण्णत्ता, तं जहा-पुस्सो, असिलेसा, मघा, पुवाफग्गुणी, उत्तराफग्गुणी, हत्थो, चित्ता। १४९. सातियाइया णं सत्त णक्खत्ता उत्तरदारिया ॐ पण्णत्ता, तं जहा-साती, विसाहा, अणुराहा, जेट्टा, मूलो, पुव्वासाढा, उत्तरासाढा। म १४८. पुष्य आदि सात नक्षत्र पश्चिमद्वार वाले हैं-(१) पुष्य, (२) अश्लेषा, (३) मघा,
(४) पूर्वफाल्गुनी, (६) हस्त, (७) चित्रा। १४९. स्वाति आदि सात नक्षत्र उत्तरद्वार वाले हैं卐 (१) स्वाति, (२) विशाखा, (३) अनुराधा, (४) ज्येष्ठा, (५) मूल, (६) पूर्वाषाढा, (७) उत्तराषाढा।
148. Seven nakshatras including Pushya are with Pashchim-dvar 4 (when going towards west is auspicious)-(1) Pushya (Delta Cancri; the 45 8th), (2) Ashlesha (Alpha Hydrae; the 9th), (3) Magha (Regulus; the
10th), (4) Purva Phalguni (Delta Leonis; the 11th), (5) Uttara Phalguni 卐 (Beta Leonis; the 12th), (6) Hasta (Delta Corvi; the 13th) and (7) Chitra #
(Spica Virginis; the 14th). 149. Seven nakshatras including Swati are with Uttar-dvar (when going towards north is auspicious)-(1) Swati (Arcturus; the 15th), (2) Vishakha (Alpha Librae; the 16th),
(3) Anuradha (Delta Scorpii; the 17th), (4) Jyeshtha (Antares; the 18th), 4 (5) Mula (Lambda Scorpii; the 19th), (6) Purva Ashadha (Delta फ़ Hi Sagittarii; the 20th) and (7) Uttara Ashadha (Sigma Sagittarii; the 21st)
विवेचन-जैन आगमों के अनुसार माना जाता है कि जिस दिशा का जो नक्षत्र हो, उस नक्षत्र के दिन उस दिशा में यात्रा करने पर नक्षत्र सामने रहता है। सन्मख नक्षत्र कार्य की सफलता व सिद्धि में ॐ सहायक बनता है।
Elaboration-According to Jain Agams there is a belief that when moving on a day assigned to a particular constellation in the direction assigned to that particular constellation one faces that particular constellation. This facing constellation is auspicious and augurs success. कूट-पद KOOT-PAD (SEGMENT OF PEAKS) १५०. जंबुद्दीवे दीवे सोमणसे वक्खारपव्वते सत्त कूडा पण्णत्ता, तं जहा
सिद्धे सोमणसे या, बोद्धव्वे मंगलावतीकूडे।
देवकुरु विमल कंचण, विसिटकूडे य बोद्धव्ये॥१॥ (संग्रहणी-गाथा) १५१. जंबुद्दीवे दीवे गंधमायणे वक्खारपव्वते सत्त कूडा पण्णता, तं जहा
सिद्धे य गंधमायण, बोद्धव्वे गंधिलावतीकूडे। उत्तरकुरु फलिहे, लोहितक्खे आणंदणे चेव ॥१॥
स्थानांगसूत्र (२)
(346)
Sthaananga Sutra (2)
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