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________________ ५१४. चार प्रकार के जीव जाति (जन्म) से आशीविष होते हैं, जैसे-(१) वृश्चिक, (२) मेंढक, म (३) सर्प, और (४) मनुष्य। ॐ प्रश्न-भगवन् ! जाति-आशीविष वृश्चिक के विष में कितना सामर्थ्य होता है ? उत्तर-गौतम ! जाति-आशीविष वृश्चिक अपने विष के प्रभाव से आधे भरत क्षेत्र प्रमाण क्षेत्र में ॐ रहने वाले शरीरों को विष-परिणत (व्याप्त) और विदलित कर सकता है। उसके विष में इतना सामर्थ्य के + है, किन्तु कार्य रूप में न कभी उसने अपने इस सामर्थ्य-शक्ति का उपयोग किया है, न वर्तमान में करता है और न भविष्य में कभी करेगा। प्रश्न-भगवन् ! जाति-आशीविष मेंढक के विष में कितना सामर्थ्य है ? ॐ उत्तर-गौतम ! जाति-आशीविष मेंढक अपने विष के प्रभाव से भरत क्षेत्र-प्रमाण प्रदेश में रहने + वाले शरीरों को विष से व्याप्त और विष विदलित करने के लिए समर्थ है। उसके विष में इतना सामर्थ्य है, किन्तु न कभी उसने अपने इस सामर्थ्य का उपयोग किया है, न वर्तमान में करता है और न भविष्य 卐 में करेगा। प्रश्न-भगवन् ! जाति-आशीविष सर्प के विष का कितना सामर्थ्य है ? उत्तर-गौतम ! जाति-आशीविष सर्प अपने विष के प्रभाव से जम्बूद्वीप प्रमाण (एक लाख योजन वाले) प्रदेश में रहने वाले शरीरों को विष-परिणत और विदलित करने में लिए समर्थ है। उसके विष म में इतना सामर्थ्य मात्र है, किन्तु न कभी उसने इस सामर्थ्य का उपयोग किया है, न करता है और न कभी करेगा। म प्रश्न-भगवन् ! जाति-आशीविष मनुष्य के विष का कितना सामर्थ्य है ? उत्तर-गौतम ! जाति-आशीविष मनुष्य अपने विष के प्रभाव से समय क्षेत्र-प्रमाण (पैंतालीस लाख म योजन) क्षेत्र में रहने वाले शरीरों को विष-परिणत और विदलित करने में लिए समर्थ है। उसके विष में इतना सामर्थ्य मात्र है, किन्तु न कभी उसने इस सामर्थ्य का उपयोग किया है, न करता है और न ॐ कभी करेगा। 514. Four kinds of beings are jati-ashivish (poisonous by birth(1) vrishchik (scorpion), (2) mendhak (frog), (3) sarp (snake) and (4) manushya (man). (Question) Bhagavan ! How strong is the venom of jati-ashivish vrishchik (venomous breed of scorpion)? (Answer) Gautam ! A jati-ashivish urishchik can harm bodies living $i in half the area of Bharat. Its venom is as strong as that but it did not, does not and will not ever employ all that strength. (Question) Bhagavan ! How strong is the venom of jati-ashivish mendhak (venomous breed of frog)? | स्थानांगसूत्र (२) (6) Sthaananga Sutra (2) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002906
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2004
Total Pages648
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_sthanang
File Size20 MB
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