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म १२४. असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर की पदातिसेना के अधिपति द्रुम की पहली कक्षा में
६४,००० देव हैं। दूसरी कक्षा में उससे दुगुने १,२८,००० देव हैं। तीसरी कक्षा में उससे दुगुने 卐 २,५६,००० देव हैं। इसी प्रकार सातवीं कक्षा तक दुगुने-दुगुने देव हैं।
124. In the first kakshaa (brigade) of Drum, the commander of foot soldiers of Chamar Asurendra, the king of Asur Kumar gods, there are 64,000 gods. In the second kakshaa the number of gods is double that of the first, i.e. 1,28,000. In the third kakshaa the number of gods is double that of the second, i.e. 2,56,000. In the same way the number continues to increase in geometric progression till the seventh kakshaa.
१२५. एवं बलिस्सवि, णवरं-महद्रुमे सट्ठिदेवसाहस्सिओ। सेसं तं चेव। १२६. धरणस्स * एवं चेव, णवरं-अट्ठावीसं देवसहस्सा। सेसं तं चेव। १२७. जधा धरणस्स एवं जाव महाघोसस्स, मणवरं-पायत्ताणियाधिपती अण्णे, ते पुव्वभणिता।
१२५. इसी प्रकार वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि की पदातिसेना के अधिपति महाद्रुम की पहली के कक्षा में ६० हजार देव हैं। आगे की कक्षाओं में क्रमशः दुगुने-दुगुने देव हैं। १२६. इसी प्रकार ॐ नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज धरण की पदातिसेना के अधिपति भद्रसेन की पहली कक्षा में २८ हजार ॥ + देव हैं। आगे की कक्षाओं में क्रमशः दुगुने-दुगुने देवे हैं। १२७. धरण के समान ही भूतानन्द से - महाघोष तक के सभी इन्द्रों के पदाति सेनापतियों की कक्षाओं की देव-संख्या हैं। विशेष-उनके ॐ पदातिसेनापति दक्षिण और उत्तर दिशा के भेद से भिन्न-भिन्न हैं, जो कि पहले बताये जा चुके हैं।
125. In the same way in the first kakshaa (brigade) of Bali, the commander of foot soldiers of Chamar Asurendra, Vairochanendra Bali, the king of Virochana gods, there are 60,000 gods. The number progressively doubles in the following kakshaas. 126. In the same way in the first kakshaa (brigade) of Bhadrasen, the commander of foot soldiers of Dharan Naagkumarendra, the king of Naag Kumar gods, there are 28, 000 gods. The number progressively doubles in the following kakshaas. 127. In the same way in the kakshaas (brigades) of the commanders of foot soldiers of Bhootanand to Mahaghosh, all the kings of gods, the number of gods is same as those of Dharan. The number progressively doubles in the following kakshaas. They have different commanders for south and north directions as already stated.
१२८. सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो हरिणेगमेसिस्स सत्त कच्छाओ पण्णत्ताओ, म तं जहा-पढमा कच्छा एवं जहा चमरस्स तहा जाव अच्चुतस्स। णाणत्तं पायत्ताणियाधिपतीणं।
ते पुवभणिता। देवपरिमाणं इमं-सक्कस्स चउरासीतिं देवसहस्सा, ईसाणस्स असीतिं देवसहस्साइंॐ
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स्थानांगसूत्र (२)
(336)
Sthaananga Sutra (2) |
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