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श्रेणि-पद
SHRENI-PAD (SEGMENT OF ROWS)
११२. सत्त सेढीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - उज्जुआयता, एगतोवंका, दुहतोवंका, एगतोखहा,
दुहतोखहा, चक्कवाला, अद्धचक्कवाला ।
११२. श्रेणियाँ (आकाश की प्रदेश- पंक्तियाँ) सात है - ( १ ) ऋजु - आयता - सीधी और लम्बी श्रेणी । (२) एकतो वक्रा - एक दिशा में वक्र श्रेणी । (३) द्वितो वक्रा - दो दिशाओं में वक्र श्रेणी । ( ४ ) एकतः खहाएक दिशा में अंकुश के समान मुड़ी हुई श्रेणी । (५) द्वितः खहा- दोनों दिशाओं में अंकुश के समान हुई श्रेणी । (६) चक्रवाला - चाक के समान वलयाकर श्रेणी । (७) अर्धचक्रवाला - आधे चाक के समान अर्धवलयाकर श्रेणी |
112. There are seven shrenis ( rows of space-points ) - ( 1 ) Riju-aayata long and straight row. (2) Ekato-vakraa-a row turned in one direction. (3) Dvito-vakraa-a row turned in two directions. (4) Ekatah-khahaa row curved like a hook in one direction. (5) Dvitah-khaha-a row curved like a hook in two direction. (6) Chakravala-a circular row. (7) Ardhachakravala-a semi-circular row.
विवेचन - जिनमें जीव और पुद्गल की अपने स्वाभाविक रूप में गति होती है, उन आकाश प्रदेशों की पंक्ति को श्रेणी कहते हैं । जीव और पुद्गल श्रेणी के अनुसार ही गमन करते हैं।
(१) ऋजु - आयता श्रेणी - जब जीव और पुद्गल ऊर्ध्वलोक से अधोलोक में या अधोलोक से ऊर्ध्वलोक में सीधी श्रेणी में गमन करते हैं, कोई मोड़ या घुमाव नहीं लेते हैं, तब उसे ऋजु - आयता श्रेणी कहते हैं। इसका आकार [[ ] ऐसी सीधी रेखा के समान है। इस गति में केवल एक समय लगता है।
सप्तम स्थान
(२) एकतोवक्रा श्रेणी - यद्यपि आकाश की प्रदेश - श्रेणियाँ ऋजु (सीधी) ही होती हैं तथापि जीव या पुद्गल के घुमावदार गति के कारण उसको वक्र कहा जाता है। जब जीव और पुद्गल ऋजुगति से गमन करते हुए दूसरी श्रेणी में पहुँचते हैं, तब उन्हें एक घुमाव लेना पड़ता है, इसलिए उसे एकतोवक्रा श्रेणी कहा जाता है। जैसे कोई जीव या पुद्गल ऊर्ध्वदिशा से अधोदिशा की पश्चिम श्रेणी पर जाना चाहता है, फ्र तो पहले समय में वह ऊपर से नीचे की ओर समश्रेणी से गमन करेगा। पुनः दूसरे समय में वहाँ से पश्चिम दिशा वाली श्रेणी पर गमन कर अभीष्ट स्थान पर पहुँचेगा। इस गति में दो समय और एक फ्र घुमाव लगने से उसका आकार [] इस प्रकार का होगा।
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(३) द्वितोवक्रा श्रेणी - जिस गति में जीव या पुद्गल को दोनों ओर मोड़ लेना पड़े उसे द्वितोवक्रा फ श्रेणी कहते हैं । जैसे कोई जीव या पुद्गल आकाश-प्रदेशों की ऊपरीसतह के ईशानकोण से चलकर नीचे जाकर नैर्ऋतकोण में जाकर उत्पन्न होता है, तो उसे पहले समय में ईशानकोण से चलकर पूर्वदिशा वाली श्रेणी पर जाना होगा । पुनः वहाँ से सीधी श्रेणी द्वारा नीचे की ओर जाना होगा। पुनः समरेखा पर 5 पहुँच कर नैर्ऋतकोण की ओर जाना होगा। इस प्रकार इस गति में दो मोड़ और तीन समय लगेंगे।
इसका आकार [1] ऐसा होगा।
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