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________________ )))))5558 )))))) (गेय के आठ गुण) णिहोसं सारवंतं च, हेउजुत्तमलंकियं। उवणीतं सोवयारं च, मितं मधुरमेव य॥८॥ (छन्द के तीन प्रकार) सममद्धसमं चेव, सव्वत्थ विसमं च जं। तिण्णि वित्तप्पयाराई, चउत्थं णोपलब्भती॥९॥ (गीत की भाषा) सक्कता पागता चेव, दोण्णि य भणिति आहिया। सरमंडलंमि गिज्जंते पसत्था इसिभासिता॥१०॥ केसी गायति मधुरं ? केसी गायति खरं च रुक्खं च ? विस्सरं पुण केरिसी ? ॥११॥ सामा गायाइ मधुरं, काली गायइ खरं च रुक्खं च। विस्सरं पुण पिंगला ॥१२॥ (सप्तस्वरसीभर) तंतिसमं तालसमं, पादसमं लयसमं गहसमं च। णीससिऊससियसमं संचारसमा सरा सत्त॥१३॥ सत्त सरा तओ गामा, मुच्छणा एकविंसती। ताणा एगूणपण्णासा, समत्तं सरमंडलं ॥१४॥ ४८. (१) प्रश्न- सातों स्वर कहाँ से, किससे उत्पन्न होते हैं ? गीत की योनि-जाति क्या है? उसका * उच्छ्वासकाल कितने समय का है ? और गीत के आकार कितने होते हैं ? (२-३) उत्तर- सातों स्वर नाभि से उत्पन्न होते हैं। रुदन गेय की योनि-जाति है। जितने समय में 9 किसी छन्द का एक चरण गाया जाता है, उतना उसका उच्छ्वासकाल होता है। गीत के तीन आकार होते हैं-आदि में मृदु, मध्य में तीव्र और अन्त में मन्द। (४) संगीत के छह दोषों, आठ गुणों, तीन वृत्तों और गीत की दो भाषाओं को भली प्रकार जानने + वाला कुशल कलाकार रंग मंच पर जाता है। (५) गीत के छह दोष इस प्रकार हैं-१. भीत दोष-डरते हुए गाना। २. द्रुत दोष-शीघ्रता वश गाना। ३. हस्व दोष-शब्दों को लघु बनाकर या हाँफते हुए गाना। ४. उत्ताल दोष-ताल के अनुसार न गाना। ५. काकस्वर दोष-काक के समान कर्ण-कटु स्वर से गाना। ६. अनुनास दोष-नाक के स्वरों से गाना।। (६) गीत के आठ गुण इस प्रकार हैं-१. पूर्ण गुण-स्वर के आरोह-अवरोह आदि से परिपूर्ण गाना। २. रक्त गुण-गाये जाने वाले राग से परिष्कृत गाना। ३. अलंकृत गुण-विभिन्न स्वरों से सुशोभित गाना। ४. व्यक्त गुण-स्पष्ट स्वर से गाना। ५. अविघुष्ट गुण-नियत या नियमित स्वर से गाना। ६. मधुर गुण-मधुर स्वर से गाना। ७. सम गुण-ताल, वीणा आदि का अनुसरण करते हुए गाना। ८. सुकुमार ॐ गुण-ललित, कोमल लय से गाना। )))) 85554)))))))))))))))) | सप्तम स्थान (301) Seventh Sthaan 895 ) ))) )))))))))5555555555558 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002906
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2004
Total Pages648
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_sthanang
File Size20 MB
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