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नय-पद NAYA PAD (SEGMENT OF STAND-POINTS)
३८. सत्त मूल गया पण्णत्ता, तं जहा-णेगमे, संगहे, ववहारे, उज्जुसुते, सद्दे, समभिरूढे, एवंभूते ।
३८. मूल नय सात हैं - ( १ ) नैगमनय - भेद (विशेष) और अभेद (सामान्य) दोनों को ग्रहण करने -
वाला । ( २ ) संग्रह - केवल अभेद को ग्रहण करने वाला। (३) व्यवहारनय- केवल भेद को ग्रहण करने वाला नय । ( ४ ) ऋजुसूत्रनय - वर्तमान क्षणवर्ती पर्याय को वस्तु रूप में स्वीकार करने वाला । (५) शब्दनय - भिन्न-भिन्न लिंग, वचन, कारक आदि के भेद से वस्तु में भेद मानने वाला । (६) समभिरूढ़नय - लिंगादि का भेद न होने पर भी पर्यायवाची शब्दों के भेद से वस्तु को भिन्न मानने नय । ( ७ ) एवम्भूतनय - वर्तमान क्रिया - परिणत वस्तु को ही वस्तु मानने वाला। (सात नयों का विस्तृत विवेचन हिन्दी टीका भाग २ पृष्ठ ३८० से ३८२ पर देखें)
वाला
38. Original nayas (stand-points) are seven-(1) Naigama naya
deals with bhed ( particular) and abhed ( general) both. (2) Samgraha
naya-deals with abhed (general) only. (3) Vyavahara naya-deals with
bhed (particular) only. (4) Rijusutra naya-accepts the mode at the present moment as the thing. (5) Shabda naya-accepts variations in
things depending on the grammatical definitions, such as gender, tense,
verb etc. (6) Samabhirudha naya-accepts variations in things based on
synonyms even in absence of grammatical differences. (7) Evambhuta naya-accepts
a thing only if it is in action at the present moment.
(For detailed description of seven nayas refer to Hindi Tika, part-2, pp. 380-382)
स्वरमंडल - पद SVARAMANDAL-PAD
(SEGMENT OF SPHERE OF MUSICAL SCALES)
तं जहा
३९. सत्त सरा पण्णत्ता,
फ्र
सज्जे रिसभे गंधारे, मज्झिमे पंचमे सरे ।
धेवते चेव णेसादे, सरा सत्त विवाहिता ॥ १ ॥ ( संग्रहणी - गाथा )
३९. स्वर सात हैं - ( १ ) षड्ज, (२) ऋषभ, (३) गान्धार, (४) मध्यम, (५) पंचम, (६) धैवत, (७) निषाद ।
सप्तम स्थान
39. There are seven svar (musical notes ) – ( 1 ) Shad j, (2) Rishabh, (3) Gaandhaar, (4) Madhyam, (5) Pancham, (6) Dhaivat, and (7) Nishad.
विवेचन - ( १ ) षड्ज - नासिका, कण्ठ, उरस, तालू, जिह्वा और दन्त इन छह स्थानों से उत्पन्न होने वाला स्वर - 'स' । (२) ऋषभ - नाभि से उठकर कण्ठ और शिर से टकराकर ऋषभ (बैल) के समान गर्जना करने वाला स्वर - 'रे' । (३) गान्धार - नाभि से समुत्थित एवं कण्ठ और शीर्ष से आहत तथा
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Seventh Sthaan
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