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person who has provided the place of stay, otherwise I will spend the night sitting in some specific posture. (7) I will accept wooden plank or bed already laid at the accepted place of stay, otherwise I will spend the night sitting in some specific posture. The last two pratimas are meant for Jinakalpi ascetics or those who have taken these specific resolves. (Vritti, leaf 215; Hindi Tika, part-2, p. 367; Pravachanasaroddhar, verse 744) आचारचूला - पद ACHAARACHULA-PAD (SEGMENT OF ACHAARACHULA)
११. सत्तसत्तिक्कया पण्णत्ता । १२. सत्त महज्झयणा पण्णत्ता ।
११. सात सप्तैकक हैं। अर्थात् आचारचूला की दूसरी चूलिका के उद्देशक- रहित अध्ययन सात हैं। प्रत्येक अध्ययन का नाम सप्त-एकक है। उनके नाम इस प्रकार हैं - ( १ ) स्थान, (२) नैषेधिकी, (३) उच्चारप्रस्रवणविधि, (४) शब्द, (५) रूप, (६) परक्रिया, (७) अन्योन्यक्रिया |
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5 प्रतिमा- पद PRATIMA PAD (SEGMENT OF SPECIAL CODES)
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१२. सात महान् अध्ययन हैं । सूत्रकृतांग के दूसरे श्रुतस्कन्ध के अध्ययन पहले श्रुतस्कन्ध के अध्ययनों की अपेक्षा बड़े हैं, उन्हें महान् अध्ययन कहा है। उनके नाम इस प्रकार हैं - ( १ ) पुण्डरीक, (२) क्रियास्थान, (३) आहार - परिज्ञा, (४) प्रत्याख्यानक्रिया, (५) अनाचार - श्रुत, (६) आर्द्रककुमारीय, 5 (७) नालन्दीय |
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11. There are seven Saptaikaks. In the second Chulika (appendix ) of फ्र Fi Achaarachula their are seven chapters without lessons. The title of f each of these chapters is Sapta-ekak. Their names are-(1) Sthaan, (2) Naishedhiki, (3) Uchchara-prasravan vidhi, ( 4 ) Shabd, (5) Rupa, (6) Parakriya and (7) Anyonya kriya.
१३. सत्तसत्तमिया णं भिक्खुपडिमा एकूणपण्णताए राईदिएहिं एगेण या छण्णउएणं
5 भिक्खासतेणं अहासुत्तं ( अहाअत्थं अहातच्चं अहामग्गं अहाकप्पं सम्मं कारणं फासिया पालिया सोहिया तीरिया किट्टिया) आराहिया यावि भवति ।
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12. There are seven Mahan Adhyayans (great chapters). The chapters 5 in the second Shrutaskandh of Sutrakritanga Sutra are voluminous as compared with those in the first Shrutaskandh. These are called Mahan 卐 Adhyayans. Their names are – (1) Pundareek, (2) Kriyasthaan, (3) AharF parijna, (4) Pratyakhyan kriya, (5) Anachar-shrut, (6) Ardrakumariya फ्र F and (7) Nalandiya.
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१३. सप्तसप्तमिका (७ × ७ =) भिक्षुप्रतिमा ४९ दिन-रात तथा १९६ भिक्षादत्तियों के द्वारा यथासूत्र, यथार्थ, यथातत्त्व, यथामार्ग, यथाकल्प तथा सम्यक् प्रकार काय से आचीर्ण, पालित, शोधित, पूरित, कीर्त्तित और आराधित की जाती है ।
सप्तम स्थान
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Seventh Sthaan
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