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चित्र परिचय ९९
सात प्रकार की पिण्डैषणा
आहार ग्रहण सम्बन्धी विशेष प्रकार का संकल्प / अभिग्रह लेकर गवेषणा करना पिण्डैषणा है। गृहस्थ मुनि को भिक्षार्थ आये देखकर प्रसन्नतापूर्वक भक्त-पान का लाभ देने की प्रार्थना करता है । फिर मुनि इन सात विधियों में से अपने अभिग्रहानुसार आहार ग्रहण करते हैं । यह पिण्डैषणा सात प्रकार की है
Illustration No. 11
(१) संसृष्ट पिण्डैषणा - गृहस्थ श्रमण को आहार देते समय देय वस्तु से लिप्त हाथ या कड़छी आदि से आहार देता है। इसी प्रकार अन्य भेद हैं। जैसे - (२) असंसृष्ट पिण्डैषणा, (३) उद्धृत पिण्डैषणा, (४) अल्पलेपिक पिण्डैषणा, (५) अवग्रहीत पिण्डैषणा, (६) प्रग्रहीत पिण्डैषणा, तथा ( ७ ) उज्झितधर्मा पिण्डेषणा - बचा हुआ / शेष भोजन या फैंकने योग्य आहार देना। (विशेष वर्णन मूल सूत्र के अर्थ और विवेचन में देखें)
-स्थान ७, सूत्र ८
SEVEN PINDAISHANAS
Exploration for food after taking some specific resolve is called pindaishana. A householder happily offers food when he sees an ascetic coming at his door seeking alms. The ascetic then accepts food according to the specific resolve he has taken out of the seven resolves listed here. Such exploration is of seven kinds
(1) Samshrisht-pind-eshana-to accept food given from hands or serving spoon soiled with the food being offered. In the same way the other kinds are (2) Asamshrisht-pindeshana, (3) Uddhrit-pind-eshana, (4) Alpalepik-pindeshana, (5) Avagrahit-pind-eshana, (6) Pragrahit-pindeshana, and (7) Ujjhitdharma-pind-eshana. (for details refer to the text and elaboration)
-Sthaan 7, Sutra 8
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