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सप्तम स्थान
सार : संक्षेप 卐 सात की संख्या से सम्बद्ध विषयों का संकलन सप्तम स्थान में है। यद्यपि जैन आगमों का मुख्य
प्रतिपाद्य आचारधर्म है, तथापि अन्य विविध विषयों का वर्णन उनमें उपलब्ध है। इस स्थान में सात ॐ संख्या वाले अनेक दार्शनिक, भौगोलिक, ज्योतिष्क, ऐतिहासिक और पौराणिक एवं प्रासंगिक विषयों के 卐 का वर्णन है।
संसार चक्र से मुक्ति पाने के लिए सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र की आराधना करना आवश्यक है। 卐 साधारण व्यक्ति किसी आधार या आश्रय के बिना उनकी आराधना नहीं कर सकता है, इसके लिए
तीर्थंकरों ने संघ की व्यवस्था की। संघ के सम्यक् संचालन का भार अनुभवी, लोकव्यवहार कुशल ॐ आचार्य को सौंपा। वह निष्ठापूर्वक अपने कर्त्तव्य का पालन करते हुए जब यह अनुभव करे कि संघ या ॥ +गण में रहते हुए मेरा आत्म-विकास सम्भव नहीं, और अधिक उच्चस्तरीय साधना के लिए आगे बढ़ना
है, तब वह गण को छोड़ कर या तो किसी महान् आचार्य के पास जाता है, या एकलविहारी होकर
आत्म-साधना में संलग्न होता है। आत्म-साधना के लिए गण को छोड़ना गणअपक्रमण है। इस स्थान में ! सर्वप्रथम गणापक्रमण-पद द्वारा इसी तथ्य का निरूपण किया है। म अहिंसा और अपरिग्रह की साधना के लिए भय मुक्त रहना आवश्यक है। भय उसे ही होता है
जिसकी शरीर आदि पर ममता होती है। इस दृष्टि से यहाँ सात प्रकार के भयों का वर्णन है। 5 साधक को किस प्रकार के वचन बोलना चाहिए और किस प्रकार के नहीं, यह वचन विवेक + आवश्यक है। इसी के साथ प्रशस्त और अप्रशस्त विनय के सात-सात प्रकार भी ज्ञातव्य हैं। अविनयी ॐ अभीष्ट सिद्धि को प्राप्त नहीं कर पाता है। अतः विनय के प्रकारों को जानकर प्रशस्त विनयों का के परिपालन करना आवश्यक है। 3 राजनीति की दृष्टि से दण्डनीति के सात प्रकार मननीय हैं। मनुष्यों में जैसे-जैसे कुटिलता की वृद्धि ॐ व आत्मानुशास की कमी हुई, वैसे-वैसे ही दण्डनीति भी कठोर होती गई। इसका क्रमिक-विकास
दण्डनीति के सात प्रकारों में निहित है। समाज व्यवस्था और राजव्यवस्था के इतिहास का क्रमिक के विकास इन सात नीतियों में लक्षित होता है।
उक्त विविध वर्णन के अतिरिक्त इस स्थान में जीव-विज्ञान, लोक-स्थिति-संस्थान, गोत्र, नय, 卐 आसन, पर्वत, सात प्रवचन निह्नव, सात समुद्घात का वर्णन है। सप्त स्वरों का विस्तृत वर्णन संगीत
विज्ञान की दृष्टि से बड़ा ज्ञानवर्धक है।
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AMMAR
स्थानांगसूत्र (२)
(272)
Sthaananga Sutra (2)
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