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१०३. कल्प की स्थिति (संयम की मर्यादा) छह प्रकार की है-(१) सामायिककल्पस्थिति, म (२) छेदोपस्थानीयकल्पस्थिति, (३) निर्विशमानकल्पस्थिति, (४) निर्विष्टमानकल्पस्थिति,
(५) जिनकल्पस्थिति और (६) स्थविरकल्पस्थिति। (इनका विवेचन स्थान ३ के सूत्र ३६४ पर किया जा फ़ चुका है।)
____103. Kalpasthiti (praxis observation) is of six kinds-(1) Samayik 4 kalpasthiti, (2) Chhedopasthapaniya kalpasthiti and (3) Nirvishamaan Si kalpasthiti, (4) Nirvisht kalpasthiti, (5) Jinakalpasthiti and
(6) Sthavirakalpasthiti. (These have been discussed in details in aphorism 364 of Sthaan 3) महावीर षष्ठभक्त-पद MAHAVIR SHASHT-BHAKT-PAD
(SEGMENT OF MAHAVIR'S TWO-DAY FASTING) १०४. समणे भगवं महावीरे छट्टेणं भत्तेणं अपाणएणं मुंडे [ भवित्ता अगाराओ अणगारियं ] * पवइए। १०५. समणस्स णं भगवओ महावीरस्स छट्टेणं भत्तेणं अपाणएणं अणंते अणुत्तरे + [णिव्वाधाए णिरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरणाणदंसणे ] समुप्पण्णे। १०६. समणे भगवं
महावीरे छट्टेणं भत्तेणं अपाणएणं सिद्धे [ बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिब्बुडे ] सव्वदुक्खप्पहीणे। # १०४. श्रमण भगवान महावीर अपानक-(जलादिपान-रहित) षष्ठभक्त-(दो उपवास) की तपस्या के के साथ मुण्डित होकर अगार से अनगारिता में प्रव्रजित हुए। १०५. श्रमण भगवान महावीर को
अपानक षष्ठभक्त की तपस्या में अनन्त, अनुत्तर, निर्व्याघात, निरावरण, कृत्स्न, परिपूर्ण केवलवर
ज्ञान-दर्शन उत्पन्न हुआ। १०६. श्रमण भगवान महावीर अपानक षष्ठभक्त से सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, + अन्तकृत् और सर्वदुःखों से रहित हुए।
104. Shraman Bhagavan Mahavir tonsured his head and renouncing Fi his household got initiated into the ascetic religion after apaanak | shashthabhakta (missing six meals or two-day fasting without water).
105. Shraman Bhagavan Mahavir attained anant (infinite), anuttar (unmatched), nirvyaaghaat (unrestricted), niraavaran (unveiled), kritsna
(perfect) and paripurna (supreme) omniscience (Keval-jnana and keval- darshan) while observing apaanak shashthabhakta. 106. Shraman
Bhagavan Mahavir became perfect (Siddha), enlightened (buddha),
liberated (mukta), free of cyclic rebirth (parinivrit), and ended all fi miseries after observing apaanak shashthabhakta. fi farura-VIMAAN-PAD (SEGMENT OF CELESTIAL VEHICLES) * १०७. सणंकुमार-माहिंदेसु णं कप्पेसु विमाणा छ जोयणसयाई उड्डे उच्चत्तेणं पण्णत्ता।
षष्ठ स्थान
(263)
Sixth Sthaan
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