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Elaboration According to the belief prevalent during the Agam writing period the skipping and addition of dates occurred during the 4 same six months of the lunar calendar. The skipping occurred during the 41
dark half of the month and addition during the bright half. Parva means full-moon date and dark-night date. अर्थावग्रह-पद ARTHAVAGRAH-PAD (SEGMENT OF ACQUIRING INFORMATION)
९८. आभिणिबोहियणाणस्स णं छबिहे अत्थोग्गहे पण्णत्ते, तं जहा-सोइंदियत्थोग्गहे, म [चक्खिदियत्थोग्गहे, घाणिंदियत्थोग्गहे, जिभिंदियत्थोग्गहे, फासिंदियत्थोग्गहे ], णोइंदियत्थोग्गहे। 卐 ९८. आभिनिबोधिक (मतिज्ञान) ज्ञान का अर्थावग्रह छह प्रकार का होता है-(१) श्रोत्रेन्द्रिय
अर्थावग्रह, (२) चक्षुरिन्द्रिय–अर्थावग्रह, (३) घ्राणेन्द्रिय अर्थावग्रह, (४) रसनेन्द्रिय-अर्थावग्रह,
(५) स्पर्शनेन्द्रिय-अर्थावग्रह, (६) नोइन्द्रिय–अर्थावग्रह। i 98. Arthavagrah (acquiring information) of Abhinibodhik jnana
(mati jnana) is of six kinds—(1) shrotendriya-arthavagraha, (2) chakshurindriya-arthavagraha, (3) ghranendriya-arthavagraha, (4) rasanendriya-arthavagraha, (5) sparshendriya-arthavagraha and (6) noindriya-arthavagraha.
विवेचन-अवग्रह के दो भेद हैं-व्यंजनावग्रह और अर्थावग्रह। उपकरणेन्द्रिय (बाह्यइन्द्रिय) के साथ ॐ शब्दादि ग्राह्य विषय के सम्बन्धों को व्यंजन कहते हैं। दोनों का सम्बन्ध होने पर अव्यक्त ज्ञान की किंचित् ॥ म मात्रा उत्पन्न होती है, उसे व्यंजनावग्रह कहते हैं। व्यंजनावग्रह के पश्चात् अर्थावग्रह उत्पन्न होता है।
___Elaboration-Avagraha (acquisition) is of two typesvyanjanavagraha and arthavagraha. The contact of sense organ with its subject is vyanjan. The acquisition of the smallest fraction of information at this point is called vyanjanavagraha. The continuing process of acquisition triggered by this is arthavagraha.
अवधिज्ञान-पद AVADHI-JNANA-PAD (SEGMENT OF AVADHI-JNANA) __ ९९. छबिहे ओहिणाणे पण्णत्ते, तं जहा-आणुगामिए, अणाणुगामिए, वडमाणए, हायमाणए, पडिवाती, अपडिवाती।
९९. अवधिज्ञान छह प्रकार का है-(१) आनुगामिक, (२) अनानुगामिक, (३) वर्धमान, (४) हीयमान, (५) प्रतिपाती, (६) अप्रतिपाती। (अवधिज्ञान का विस्तृत वर्णन सचित्र नन्दीसूत्र अवधिज्ञान प्रकरण पृष्ठ ८० देखें)
99. Avadhi-jnana--is of six kinds—(1) Aanugaamik, (2) Ananugaamik, (3) Vardhaman, (4) Hiyaman, (5) Pratipati and (6) Apratipati. (for detailed 5discussion on Avadhi-jnana refer to Illustrated Nandi Sutra p. 80)
षष्ठ स्थान
(259)
Sixth Sthaan
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