________________
卐
फफफफफफफफफफ
卐
फ्र
(5) dhyan (meditation) and ( 6 ) vyutsarg (dissociation from the body or abandoning the body). (for more details refer to Aupapatik Sutra)
卐 ६७. छव्विहे विवादे पण्णत्ते, तं जहा - अ
फ्र
विवाद- पद VIVAAD PAD (SEGMENT OF DEBATE )
卐
पर समय बिताने के लिए प्रस्तुत विषय से हट जाना । (२) उस्सक्कइत्ता - शास्त्रार्थ की पूर्ण तैयारी होते ही
5 वादी को पराजित करने के लिए आगे आना । (३) अणुलोमइत्ता-विवादाध्यक्ष को अपने अनुकूल बना लेना अथवा प्रतिवादी के पक्ष का एक बार समर्थन कर उसे अपने अनुकूल कर लेना । फ्र ( ४ ) पडिलोमइत्ता - शास्त्रार्थ की पूर्ण तैयारी होने पर विवादाध्यक्ष तथा प्रतिपक्षी की उपेक्षा कर देना । (५) भइत्ता - विवादाध्यक्ष (निर्णायक) की सेवा कर उसे अपने पक्ष में कर लेना । ( ६ ) भेलइत्ता - 卐 निर्णायकों में अपने समर्थकों का बहुमत कर लेना ।
卐
पडिलोमइत्ता, भइत्ता, भेलइत्ता ।
६७. विवाद के छह प्रकार ( अंग ) हैं - ( १ ) ओसक्कइत्ता - वादी के तर्क का उत्तर ध्यान में न आने
- ओसक्कइत्ता, उस्सक्कइत्ता, अणुलोमइत्ता,
67. There are six kinds (parts) of vivaad ( debate ) - ( 1 ) Osakkaittato shift from the topic under discussion to bide one's time when reply to the opponents argument is not thought out. (2) Ussakkaitta—to come forward to defeat the opponent when fully prepared for debate. (3) Anulomaitta-to make the judge favourable or to make the opponent sympathetic by supporting his argument once. (4) Padilomaitta
to ignore the judge as well as opponent in case fully prepared for debate.
(5) Bhaitta-To seek favour of the judge by offering him services.
(6) Bhelaitta—to build favourable majority among a group of judges.
६८. छव्विहा खुड्डा पाणा पण्णत्ता, तं जहा - बेंदिया, तेइंदिया, चउरिंदिया, मुच्छिमपंचिंदियतिरिक्खजोणिया, तेउकाइया, वाउकाइया ।
६८. क्षुद्र प्राणी छह प्रकार के हैं - (१) द्वीन्द्रिय, (२) त्रीन्द्रिय, (३) चतुरिन्द्रिय, (४) सम्मूर्च्छिम पंचेन्द्रियतिर्यग्योनिक, (५) तेजस्कायिक, (६) वायुकायिक |
68. Kshudra prani (worthless living beings) are of six kindsफ (1) Dvindriya (two-sensed beings), (2) Trindriya (three-sensed beings), फ (3) Chaturindriya (four-sensed beings), (4) Sammurchhim panchendriyatiryagyonik (five-sensed animal beings of asexual origin) and (5) tejaskayik (fire-bodied beings) and (6) vayukayik (air-bodied beings).
विवेचन - वृत्तिकार ने क्षुद्र का अर्थ तुच्छ या अधम किया है। इनको क्षुद्र मानने के दो कारण हैं(१) इनमें कोई भी देव गति से आकर उत्पन्न नहीं होता। (२) इनसे निकलकर दूसरे भव में सिद्ध नहीं होता । (वृत्ति पत्र ३४७)
षष्ठ स्थान
Jain Education International
(249)
For Private & Personal Use Only
Sixth Sthaan
फ
फफफफफफफफफफफफफफफ
卐
www.jainelibrary.org