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पर्यङ्कासन से बैठे हुए, या खड्गासन से अवस्थित रहते हुए पाँव टिकाये बिना ही विविध आसनों से आकाश में विहार करने वालों को आकाशगामिऋद्धि सम्पन्न कहा है।
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(५) पुष्पचारण - वृक्षों के पुष्पों को स्पर्श किये बिना उनके ऊपर गमन करने वाले । ( ६ ) मर्कट तन्तुचारण- मकड़ी के तन्तुओं को स्पर्श किये बिना उनके ऊपर चलने वाले । (७) जलचारण - जल को 5 5 स्पर्श किये बिना उसके ऊपर चलने वाले। (८) अंकुरचारण- वनस्पति के अंकुरों को स्पर्श किये बिना ऊपर चलने वाले । (९) बीजचारण - बीजों को स्पर्श किये बिना उनके ऊपर चलने वाले । (१०) धूमचारण-तिरछी या ऊँची गति वाले धूम का स्पर्श किये बिना उसकी गति के साथ चलने वाले इसी प्रकार वायुचारण, नीहारचारण, जलदचारण आदि चारणऋद्धि वालों के अनेक प्रकार हैं ।
विक्रियाऋद्धि के अणिमा, महिमा, लघिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, वशित्व, ईशित्व, अप्रतिघात, अन्तर्धान, कामरूपित्व आदि अनेक भेद हैं।
तपऋद्धि के उग्र तप, दीप्त तप, तप्त तप, महाघोर, तपोघोर, पराक्रमघोर और ब्रह्मचर्य, ये सात भेद बताये हैं।
बलऋद्धि के मनोबली, वचनबली और कायबली, ये तीन भेद हैं । औषधऋद्धि के आठ भेद हैंआमर्श, श्वेल (श्लेष्म), जल्ल, मल, विट्, सर्वोषधि, आस्यनिर्विष, दृष्टिनिर्विष । रसऋद्धि के छह भेद हैं- क्षीरस्रवी, मधुस्रवी, सर्पिःस्रवी, अमृतस्रवी, आस्यनिर्विष और दृष्टिनिर्विष । क्षेत्रऋद्धि के दो भेद हैंअक्षीण महानस (भोजन) और अक्षीण महालय (आवास) । उक्त सभी ऋद्धियों का विस्तृत वर्णन प्रवचनसारोद्धार में है । विशेषावश्यकभाष्य में २८ ऋद्धियों का वर्णन है।
In the Pravachanasaroddhar (Dvar 68) many other categories of chaaran riddhi are mentioned. (1) Janghachaaran-who move about four Angul (width of a finger) above ground. (2) Agnishikhachaaran— who move over flames without touching them. (3) Shrenichaaran-who move about over mountain ranges without touching them. (4) Phali chaaran-who move about over trees without touching their fruits. (5) Pushp-chaaran-who move about over trees without touching their
षष्ठ स्थान
Elaboration-The special abilities of Arhant, Chakravarti, Baladeva and Vasudeva are acquired as fruits of meritorious karmas from the past birth. The powers of Vidyadhars dwelling at Vaitadhya mountain are genetic as well as self-acquired through specific practices. However, the 5 chaaran powers are only acquired by highly austere ascetics through their vigorous austerities. Explaining the term chaaran, the commentator (Vritti) mentions two words janghachaaran and vidyachaaran. Those who acquire the ability to move about hovering with the support of water, thighs (in sitting posture), flower etc. are called janghachaaran. Those who acquire the capability to fly in the sky are called vidyachaaran.
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Sixth Sthaan
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