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फ्रं मनुष्य, (४) कर्मभूमि में उत्पन्न होने वाले गर्भज मनुष्य, (५) अकर्मभूमि में उत्पन्न होने वाले गर्भज
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मनुष्य, (६) अन्तद्वीपों में उत्पन्न होने वाले गर्भज मनुष्य ।
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20. Manushya (humans) are of six kinds-(1) born in Jambu Dveep,
(2) born in the eastern half of Dhatakikhand Dveep, ( 3 ) born in the western half of Dhatakikhand Dveep, (4) born in the eastern half of Pushkaravar Dveepardh, (5) born in the western half of Pushkaravar Dveepardh, and (6) born in Antar Dveeps ( middle islands).
२१. छव्हिा इड्ढमंता मणुस्सा पण्णत्ता, तं जहा - अरहंता, चक्कवट्टी, बलदेवा, वासुदेवा,
विज्जाहरा ।
चारणा,
२१. (विशिष्ट) ऋद्धि वाले मनुष्य छह प्रकार के हैं - (१) अर्हन्त, (२) चक्रवर्ती, (३) बलदेव, (४) वासुदेव, (५) चारण, (६) विद्याधर ।
Also Manushya ( humans) are of six kinds – ( 1 ) sammurchhim
(of asexual origin) manushya born in karmabhumi (land of endeavour),
( 2 ) sammurchhim (of asexual origin) manushya born in akarmabhumi (land of inactivity), (3) sammurchhim (of asexual origin) manushya born
in Antar Dveep (middle islands ), ( 1 ) garbhaj (placental) manushya born 5 in karmabhumi (land of endeavour), (2) garbhaj (placental) manushya 5 born in akarmabhumi (land of inactivity), (3) garbhaj (placental) manushya born in Antar Dveep (middle islands).
(5) Chaaran and (6) Vidyadhar.
फ्र
21. Persons with (Vishisht) riddhi (wealth of paranormal abilities) are
5 of six kinds – (1) Arhant, (2) Chakravarti, (3) Baladeva, (4) Vasudeva, 5
की शक्ति प्राप्त होती है, वे विद्याचारण कहलाते हैं।
प्रवचन सारोद्धार द्वार ६८ में चारणऋद्धि के भी अनेक भेद बताये हैं । यथा - ( १ ) जंघाचारण- भूमि से चार अंगुल ऊपर गमन करने वाले । (२) अग्निशिखाचारण- अग्नि की शिखा का स्पर्श किये बिना उसके ऊपर गमन करने वाले । (३) श्रेणिचारण - पर्वतश्रेणि आदि का स्पर्श किये बिना उनके ऊपर गमन करने वाले । ( ४ ) फलचारण- वृक्षों के फलों को स्पर्श किये बिना उनके ऊपर गमन करने वाले ।
स्थानांगसूत्र (२)
विवेचन-अर्हन्त, चक्रवर्ती, बलदेव और वासुदेव की ऋद्धि तो पूर्वभवोपार्जित पुण्य के प्रभाव से
प्राप्त होती है । वैतान्यनिवासी विद्याधरों की ऋद्धि कुलक्रमागत भी होती है और इस भव में भी विद्याओं 5 की साधना से प्राप्त होती है । किन्तु चारणऋद्धि महान् तपस्वी साधुओं की कठिन तपस्या से प्राप्त होती है । वृत्तिकार ने 'चारण' के अर्थ में 'जंघाचारण' और 'विद्याचारण' इन दो नामों का उल्लेख किया है। जिन्हें तप के प्रभाव से भूमि का स्पर्श किये बिना ही जल, जंघा, पुष्प आदि का आलम्बन लेकर अधर 45 गमनागमन की लब्धि प्राप्त होती है, वे जंघाचरण और विद्या की साधना से जिन्हें आकाश में गमनागमन
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Sthaananga Sutra ( 2 )
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